
अन्नदाता संघर्ष की राह पर
भारतीय संस्कृति में अन्नदाता का दर्जा बड़े गौरव से दिया गया है। किसान है तो खेती है और खेती है तो अन्न है। लेकिन पिछले कुछ समय से हम देख रहे हैं कि किसान अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर हैं। उन्होंने पंजाब की सीमाओं पर मोर्चे लगा रखे हैं। किसान जहां भीषण सर्दी, गर्मी और बारिश का सामना कर रहे हैं, वहीं आम लोग भी सड़कें बंद होने से परेशान हैं। कई बार ट्रेनें भी रोकी गई हैं, जिससे यात्रियों को भी असुविधा हुई है और सरकारों को भी करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ है।
भारतीय संस्कृति में अन्नदाता का दर्जा बड़े गौरव से दिया गया है। किसान है तो खेती है और खेती है तो अन्न है। लेकिन पिछले कुछ समय से हम देख रहे हैं कि किसान अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर हैं। उन्होंने पंजाब की सीमाओं पर मोर्चे लगा रखे हैं। किसान जहां भीषण सर्दी, गर्मी और बारिश का सामना कर रहे हैं, वहीं आम लोग भी सड़कें बंद होने से परेशान हैं। कई बार ट्रेनें भी रोकी गई हैं, जिससे यात्रियों को भी असुविधा हुई है और सरकारों को भी करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ है।
हालांकि समय-समय पर किसान अपनी मांगों को लेकर अल्पकालिक आंदोलनों में शामिल रहे हैं। लेकिन आज का संघर्ष काफी लंबा हो गया है। अगर इस आंदोलन की पृष्ठभूमि की बात करें तो सितंबर 2020 में संसद ने 3 कृषि कानून पारित किए: नंबर एक किसान उपज, व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020, मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा विधेयक 2020, किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता और आवश्यक वस्तु (अनुसंधान) विधेयक 2020। सरकार का दावा था कि इस तरह की व्यवस्था से कृषि क्षेत्र में सरकारी हस्तक्षेप कम होगा और निजी क्षेत्र के लिए अधिक अवसर पैदा होंगे। किसान सरकार की मंशा को लेकर आश्वस्त नहीं थे।
इन कानूनों के पारित होने के बाद से ही किसान संघर्ष की राह पर हैं। विभिन्न किसान समूहों ने इन्हें किसान विरोधी काले कानून के रूप में चित्रित किया। किसानों और उनके प्रतिनिधियों ने इन्हें निरस्त कराने के लिए काफी संघर्ष किया। दिल्ली की सीमाओं पर स्थायी मोर्चे बनाए गए। किसानों ने इन कानूनों पर रोक लगाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को भी खारिज कर दिया किसानों का मानना है कि यह कानून मंडी व्यवस्था को खत्म कर देगा और किसानों को कॉरपोरेट्स की दया पर छोड़ देगा।
इसके अलावा यह व्यवस्था किसानों को वित्तीय ऋण मुहैया कराने और समय पर खरीद सुनिश्चित करने, उनकी फसलों का उचित मूल्य दिलाने का वादा करके बिचौलियों के रूप में काम करने वाले आढ़तियों (कमीशन एजेंट) के व्यापार और आपसी संबंधों को खत्म कर देगी। इसके अलावा एपीएमसी मंडियों को खत्म करने से न्यूनतम समर्थन खरीद मूल्य पर उनकी फसलों की खरीद को बढ़ावा मिलेगा। इसलिए वे एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की लिखित गारंटी की मांग कर रहे हैं।
इस पूरे आंदोलन की खबर पूरी दुनिया में फैल गई। इससे देश के मेहनतकश किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ा। किसान जत्था बंदिया के आंकड़ों के मुताबिक करीब 750 आंदोलनकारियों की जान जा चुकी है, भले ही सरकार ने इन और अन्य काले कानूनों को वापस ले लिया हो, लेकिन किसानों का संघर्ष अभी भी जारी है। पिछले कुछ दिनों से कुछ किसान नेता आमरण अनशन पर हैं। उनका आरोप है कि सरकार ने उनसे किए गए वादे पूरे नहीं किए हैं। उनकी मुख्य मांगें हैं: तीनों कृषि कानूनों को पूरी तरह से निरस्त करने के लिए समाद का विशेष सत्र बुलाना। न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और फसलों की सरकारी खरीद को कानूनी अधिकार बनाना।
पारंपरिक खरीद प्रणाली को जारी रखने का आश्वासन। स्वामीनाथन समिति की रिपोर्ट को लागू करना। कृषि में उपयोग के लिए डीजल की कीमतों में कमी। धराली जलाने के आरोपियों के खिलाफ दर्ज मामलों को रद्द करना। बिजली अध्यादेश 2020 को समाप्त करना। किसान नेताओं के खिलाफ सभी मामलों को वापस लेने और रिहा करने की मांग शामिल है। पंजाब मुख्य रूप से कृषि प्रधान राज्य है। लेकिन आज के समय में चूंकि कृषि एक लाभदायक व्यवसाय नहीं है, इसलिए हमारी अगली पीढ़ी इस पेशे से विमुख हो रही है। इसका मुख्य कारण कृषि लागत में वृद्धि और मुनाफे में कमी है। पंजाब आज रेगिस्तान बनने की ओर बढ़ रहा है। गिरता भूजल स्तर सभी के लिए चिंता का विषय है।
इसके अलावा नकली बीज, नकली कीटनाशक और उर्वरकों ने कृषि की कमर तोड़ दी है। मौसम में आश्चर्यजनक बदलाव कृषि लोगों पर भारी पड़ रहा है। आज मजदूर और किसान दयनीय परिस्थितियों से गुजर रहे हैं। भोजन और खाद्यान्न भंडार हर देश की बुनियादी जरूरतें हैं। ये तभी बचेगी जब किसान और हमारी खेती बचेगी। महात्मा गांधी जी ने कहा था कि भारत गांवों में बसता है।
हमारे गांवों में लोगों की आजीविका का मुख्य स्रोत खेती है। देश तभी समृद्ध कहलाएगा जब उन गांवों में रहने वाले मजदूर और किसान समृद्ध होंगे। समय की मुख्य मांग है कि सरकारें किसानों के साथ मिलकर इस आंदोलन का सार्थक और स्थायी समाधान निकालें।
दविंदर कुमार (संपादक)
