अति-शहरीकरण: एक गंभीर समस्या

5 जून को हर साल "विश्व पर्यावरण दिवस" के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस पहली बार 1973 में आम जनता में पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए मनाया गया था। हमारे पर्यावरण में दिन-प्रतिदिन कई तरह के प्रदूषण फैल रहे हैं, जिनमें समुद्री प्रदूषण, बढ़ती जनसंख्या, ग्लोबल वार्मिंग, शहरीकरण से जुड़ी समस्याएं और प्राकृतिक संसाधनों में प्रदूषण का फैलना शामिल है। विकास के साथ-साथ शहरी बस्तियाँ और जनसंख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इसके साथ ही प्लास्टिक से जुड़ा प्रदूषण भी खतरनाक स्तर तक बढ़ गया है। इस बार विश्व पर्यावरण दिवस की थीम है, "प्लास्टिक प्रदूषण को वैश्विक स्तर पर समाप्त करना"।

5 जून को हर साल "विश्व पर्यावरण दिवस" के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस पहली बार 1973 में आम जनता में पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए मनाया गया था। हमारे पर्यावरण में दिन-प्रतिदिन कई तरह के प्रदूषण फैल रहे हैं, जिनमें समुद्री प्रदूषण, बढ़ती जनसंख्या, ग्लोबल वार्मिंग, शहरीकरण से जुड़ी समस्याएं और प्राकृतिक संसाधनों में प्रदूषण का फैलना शामिल है। विकास के साथ-साथ शहरी बस्तियाँ और जनसंख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इसके साथ ही प्लास्टिक से जुड़ा प्रदूषण भी खतरनाक स्तर तक बढ़ गया है। इस बार विश्व पर्यावरण दिवस की थीम है, "प्लास्टिक प्रदूषण को वैश्विक स्तर पर समाप्त करना"।
आज हम अपने पर्यावरण से हरियाली, पानी, खेत और पक्षियों को गायब होते देख रहे हैं। हरे-भरे खेतों और पेड़ों की कतारों की जगह बाग-बगीचे, कंक्रीट की इमारतें, पुल और आसमान छूती सड़कें बन रही हैं। विकास के नाम पर ब्रह्मांड का विनाश हो रहा है। शहरीकरण विकास की निशानी जरूर है, लेकिन इसके दुष्परिणामों को भी नकारा नहीं जा सकता। 
अगर देश में सबसे ज्यादा शहरी आबादी वाले राज्यों की बात करें तो गोवा पहले नंबर पर आता है, जहां की करीब 62.2% आबादी शहरी इलाके में बसी है। उसके बाद तमिलनाडु और केरल राज्य हैं, जहां क्रमश: 48.4% और 47.7% आबादी शहरी है। शहरीकरण देश के विकास की निशानी है, इसके दुष्प्रभावों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आज के दौर में बढ़ता प्रदूषण, वनों की कटाई और आम नागरिकों के स्वास्थ्य में गिरावट इसके मुख्य दुष्प्रभाव माने जा सकते हैं। 
हमारे देश में शहरों के तेजी से विकास के कारण वायु प्रदूषण अधिक है और हरियाली दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है। आज हम देख रहे हैं कि शहरों के आसपास फैले खेत और जंगल गायब हो रहे हैं। छोटे-छोटे कस्बों और गांवों के आसपास की जमीनों पर कॉलोनियां बस रही हैं। अगर शहरीकरण के कारणों की बात करें तो इसके मुख्य कारणों में औद्योगीकरण, व्यावसायीकरण, सामाजिक लाभ और सुविधाएं, बेहतर रोजगार के अवसर और रहन-सहन में बदलाव माने जा सकते हैं ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में व्यापार या व्यवसाय के बेहतर अवसर उपलब्ध होते हैं। 
अच्छी शैक्षणिक सुविधाएँ, उच्च जीवन स्तर, अच्छी स्वच्छता, आवास, अच्छी गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाएँ और मनोरंजन के आधुनिक साधन भी शहरी जीवन के प्रति आकर्षण पैदा करते हैं। अगर हम अपने राज्य पंजाब की बात करें तो यहाँ 1970 के बाद शहरी क्षेत्रों का निर्माण और विकास तेजी से हुआ है। 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य की कुल आबादी का 37.52% हिस्सा शहरी क्षेत्रों में बसा है। इस विकास या वृद्धि का मुख्य कारण औद्योगीकरण, बुनियादी ढाँचे में विकास और सरकारी नीतियाँ मानी जा सकती हैं। यह प्रचलन राष्ट्रीय औसत दर से अधिक है। 
जहाँ तेज़ गति से हो रहे शहरीकरण से रोज़गार के अच्छे अवसर पैदा होते हैं, वहीं इसके साथ कुछ समस्याएँ भी जुड़ी हैं। आज के दौर में परिवहन की बाधाएँ, पानी और आवास की कमी शहरी जीवन की पहचान बन गई है। हालाँकि शहरी विकास से कई आर्थिक लाभ मिलते हैं, लेकिन इससे खेती योग्य भूमि भी कम होती है। पारंपरिक ग्रामीण व्यवसाय और कौशल लुप्त होते जा रहे हैं। अन्य राज्यों की तुलना में पंजाब की प्रति व्यक्ति आय अच्छी होने के कारण लोगों का शहरों की ओर रुख करने का रुझान काफी बढ़ गया है। 
शहरीकरण ने यहां भी कई समस्याओं को जन्म दिया है, जिसमें आवास की कमी, झुग्गी-झोपड़ियों का फैलाव, सार्वजनिक सुविधाओं की कमी, अनधिकृत विकास, बिगड़ता शहरी वातावरण और परिवहन तथा अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव शामिल है। आज हमारे राज्य की हालत यह है कि यहां खेती योग्य भूमि कम होती जा रही है। शहर और उद्योग फैल रहे हैं, कृषि भूमि का उपयोग गैर-कृषि गतिविधियों के लिए किया जा रहा है। इस प्रकार, पंजाब में वन विलुप्त होने के कगार पर हैं, आज केवल 3.67% क्षेत्र वनों के अंतर्गत है, जबकि देश में यह 21.71% है। 
दिन-प्रतिदिन लुप्त होते जा रहे वन कई समस्याएं पैदा कर रहे हैं। इनके कम होने से पशु-पक्षियों की कई प्रजातियां कम हो रही हैं या लुप्त हो रही हैं। आज समय की मांग है कि हम विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान न पहुंचाएं। कंक्रीट के जंगल बनाकर हरियाली, हवा, पानी और जमीन को नष्ट न करें। 
"पिंड जिनां दे गड़े चलन, हुकूम अते सरदारी, 
शहर च  आके बन जांदे ने बस दी इक सवारी।"  --------डॉ. सुरजीत पातर 


दविंदर कुमार

- देविंदर कुमार