मनुष्य का बचपन से लेकर बुढ़ापे तक का सफर

निरंतर परिवर्तन की प्रक्रिया को जीवन कहते हैं| मनुष्य का बचपन से लेकर बुढ़ापे तक का सफर अनगिनत मोड़ों से गुजरते हुए तय होता है। भारत के कई राज्यों में सेवानिवृत्ति की आयु 58 वर्ष है, जबकि केदरी सरकार के कर्मचारियों के लिए यह अवधि 60 वर्ष निर्धारित की गई है। परंपरागत रूप से वृद्धावस्था 65 वर्ष मानी जाती है, लेकिन इसके कारण जीव विज्ञान में नहीं बल्कि इतिहास में मिलते हैं। कई साल पहले, जर्मनी में 65 वर्ष की आयु को सेवानिवृत्ति की आयु के रूप में चुना गया था इसी तरह अमेरिका में साल 1965 में स्वास्थ्य बीमा की उम्र 65 साल मानी गई थी वैसे भारत जैसे प्रगतिशील देश के लोगों की तुलना घूराप या उन्नत अर्थव्यवस्था वाले लोगों से नहीं की जा सकती।

निरंतर परिवर्तन की प्रक्रिया को जीवन कहते हैं| मनुष्य का बचपन से लेकर बुढ़ापे तक का सफर अनगिनत मोड़ों से गुजरते हुए तय होता है। भारत के कई राज्यों में सेवानिवृत्ति की आयु 58 वर्ष है, जबकि केदरी सरकार के कर्मचारियों के लिए यह अवधि 60 वर्ष निर्धारित की गई है। परंपरागत रूप से वृद्धावस्था 65 वर्ष मानी जाती है, लेकिन इसके कारण जीव विज्ञान में नहीं बल्कि इतिहास में मिलते हैं। कई साल पहले, जर्मनी में 65 वर्ष की आयु को सेवानिवृत्ति की आयु के रूप में चुना गया था इसी तरह अमेरिका में साल 1965 में स्वास्थ्य बीमा की उम्र 65 साल मानी गई थी वैसे भारत जैसे प्रगतिशील देश के लोगों की तुलना घूराप या उन्नत अर्थव्यवस्था वाले लोगों से नहीं की जा सकती। कड़वा सच कहूँ तो यह हमारे बुढ़ापे, हमारी आर्थिक स्थिति, स्वास्थ्य सुविधाओं और पारिवारिक एकता पर भी निर्भर करता है। उम्र बढ़ना एक सतत प्रक्रिया है, जिस तरह समय की गति को रोका नहीं जा सकता, उसी तरह उम्र के प्रवाह को भी नहीं रोका जा सकता। हमारा तथा हमारे पारिवारिक एवं सामाजिक परिवेश का प्रयास जीवन के इस चरण को सुखी एवं स्वस्थ बनाना होना चाहिए। स्वस्थ उम्र बढ़ने का अर्थ है उम्र बढ़ने के अवांछित प्रभावों को स्थगित करना या कम करना स्वस्थ उम्र बढ़ने के लक्ष्यों में शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बनाए रखना, बीमारियों से बचना, सक्रिय और आत्मनिर्भर होना शामिल है। शमिल ए। आज के समय में अच्छा स्वास्थ्य, पौष्टिक आहार, नशे से परहेज, नियमित व्यायाम और मानसिक रूप से सक्रिय रहना बेहद महत्वपूर्ण मुद्दे हैं।
आज हमारे देश में स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार के कारण औसत आयु में वृद्धि हुई है इसका सीधा मतलब यह भी है कि मृत्यु दर कम हो गई है और जीवन प्रत्याशा बढ़ गई है हमारी सामाजिक संरचना में बुजुर्ग नागरिकों की संख्या बढ़ी है पुराने समय में बड़े एवं संयुक्त परिवारों में बुजुर्गों का महत्वपूर्ण स्थान होता था वे जो बात कहते थे उस पर जो सलाह देते थे उसका परिवार में अपना महत्व होता था लेकिन आज के दौर में टूटते परिवार, पैसों की कमी और रोजगार के लिए विदेश भटकने ने बुजुर्गों के जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव डाला है। बच्चों से दूर अकेलापन, रिश्तों में प्यार की कमी ने एक नई इमारत बनाई है "वृद्ध आश्रम"।
भारत में पहला वृद्धाश्रम 1911 में केरल प्रभा के त्रिशूर नामक स्थान पर खोला गया था। इसकी स्थापना कोचीन के राजा ने की थी और इसका नाम "राजा वर्मा ओल्ड एज होम" रखा गया था। केरल में बुजुर्गों की संख्या काफी अधिक है कुल आबादी में 14 फीसदी बुजुर्ग लोग हैं देश के नागरिकों के लिए आवश्यक अन्य सुविधाओं की तरह, बुजुर्गों के लिए ये घर भी एक मजबूरी और आवश्यकता बन गए हैं। ये घर पंजाब और चंडीगढ़ में रहने के लिए एक सुरक्षित और आरामदायक वातावरण प्रदान करते हैं एक मीडियाकर्मी होने के नाते मुझे इन आश्रमों को देखने का मौका मिला मैं उनके रखरखाव, प्रबंधन और सुविधाओं की दिल से सराहना करता हूं लेकिन जो बात हमें रुलाती है वह है परिवारों का अपने बुजुर्गों के प्रति उदासीन रवैया। पटियाला के एक प्रसिद्ध वृद्ध आश्रम के प्रबंधकों ने कहा कि कुछ बुजुर्गों को उनके उत्तराधिकारियों ने मंदिरों और गुरुद्वारों के पास बेसहारा छोड़ दिया था। दूसरी कहानी उसने यह बताई कि यहां कुछ वर्षों से एक बूढ़ा व्यक्ति रहता था बीमारी की चपेट में आने के बाद एक सुबह उनकी मृत्यु हो गई चंडीगढ़ में रह रहे उनके बेटे को सूचना दी गई पूरा दिन बीत गया, शाम 5 बजे मैंने उसे फिर फोन किया - जवाब आया- ठीक है, तुमने सुबह बताया था। खैर, आश्रम की ओर से विधि-विधान से उनका अंतिम संस्कार किया गया यहां रहने वाले लोगों से मिलने के बाद मुझे एक बात का एहसास हुआ कि अपने घर के प्रति उनका प्यार अभी भी उनके दिल और दिमाग में बरकरार है। खुद से मिलने की चाहत है हजारों अच्छी सुविधाएं मिलने के बावजूद भी वे अपने घर में ही रहना चाहते हैं हमें अपनी सोच और नजरिया बदलने की जरूरत है

- देविंदर कुमार