
कानून के अनुसार कानूनी निर्णय
आज के समय में मनुष्य में हिंसक प्रवृत्ति खतरनाक स्तर तक बढ़ गई है। पूरी दुनिया की सबसे बड़ी चिंता दिन-प्रतिदिन बढ़ती आक्रामक हरकतें हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो युवा इस प्रवृत्ति से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। लोगों में सहनशीलता, संयम, क्षमा और करुणा जैसे नैतिक गुण कम होते जा रहे हैं या खत्म होते जा रहे हैं। युवा कानून की परवाह किए बिना हिंसक कृत्य कर रहे हैं।
आज के समय में मनुष्य में हिंसक प्रवृत्ति खतरनाक स्तर तक बढ़ गई है। पूरी दुनिया की सबसे बड़ी चिंता दिन-प्रतिदिन बढ़ती आक्रामक हरकतें हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो युवा इस प्रवृत्ति से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। लोगों में सहनशीलता, संयम, क्षमा और करुणा जैसे नैतिक गुण कम होते जा रहे हैं या खत्म होते जा रहे हैं। युवा कानून की परवाह किए बिना हिंसक कृत्य कर रहे हैं।
दुनिया भर से स्कूलों में गोलीबारी, डकैती और यौन अपराधों की खबरें आती रहती हैं। यह युवाओं की मानसिक अशांति का संकेत है। इस मनोदशा के कई अन्य कारण भी हो सकते हैं जैसे उपेक्षित और दुर्व्यवहार वाला बचपन, हिंसक प्रवृत्ति वाले दोस्तों की संगति, असामाजिक तत्वों का प्रभाव, आर्थिक स्थिति और व्यक्ति का परिवेश। अपने दैनिक जीवन में हम अक्सर ऐसी घटनाएं देखते हैं।
अगर किसी की गाड़ी किसी दूसरे की गाड़ी से गंभीर रूप से टकरा जाती है तो सबसे पहली प्रतिक्रिया गाली-गलौज और मारपीट की होती है। आमतौर पर मोहल्ले में होने वाली छोटी-मोटी बहस अक्सर भयंकर लड़ाई में बदल जाती है और कई बार जानलेवा भी हो जाती है। अगर हम पंजाब में पिछले दिनों हुई कुछ घटनाओं का जिक्र करें तो लुधियाना की एक सोशल इन्फ्लुएंसर कंचन रानी की हत्या और कुछ अन्य लोगों को मिली इसी तरह की धमकियां उनमें प्रमुख हैं। सोशल मीडिया और हर किसी के हाथ में आ चुके मोबाइल फोन ने हमारे सामाजिक ताने-बाने को बुरी तरह प्रभावित किया है। इससे अपराध और कामुकता फैल रही है।
अश्लीलता किसी भी रूप में स्वीकार नहीं की जा सकती। पंजाब गुरुओं, पीरों और योद्धाओं की पवित्र भूमि है। यहां नग्नता और कामुकता को बढ़ावा देना ठीक नहीं है। लेकिन अगर हम इसे हत्या या धमकियों से सुलझाने की बात करें तो यह भी सभ्य समाज की निशानी नहीं है। आज देश न्याय व्यवस्था, कानून और संविधान के अनुसार चलता है। यह समय अपने आप फैसले लेने और निर्णय लेने का नहीं है। इसका अंत कई परिवारों और जिंदगियों के बर्बाद होने के अलावा और कुछ नहीं है। हमें देश के कानून पर भरोसा रखना चाहिए।
हमारे देश की न्याय व्यवस्था हमेशा देरी से चलने वाली होती है। एक आम कहावत है कि "देरी से मिला न्याय न्याय से वंचित होना है"। हमारी न्याय व्यवस्था में यह बात कुछ हद तक सही है। दिवंगत पंजाबी कवि डॉ. सुरजीत पातर की एक कविता है।
"इस अदालत में लोग बिखर गए हैं, फैसले सुनते-सुनते सूख गए हैं
उनसे कहो अब अपने उजड़े घरों में चले जाएं, कब तक यहां खड़े रहेंगे।"
जब कोई व्यक्ति वर्षों तक न्याय का इंतजार करते-करते थक जाता है, तो यह न्याय से इनकार करने के समान ही होता है। खास तौर पर आपराधिक और दीवानी मामलों में यह लंबा इंतजार पीड़ितों की पीड़ा और पीड़ा को और बढ़ा देता है। देरी से लिए गए फैसले न्याय व्यवस्था के सार्थक प्रभाव को कम करते हैं और गलत काम करने वालों के मन में कानून के प्रति डर को कम करते हैं।
आज मोबाइल फोन हर अमीर-गरीब की पहुंच में आ गया है। यह जहां आपसी संवाद और ज्ञान का जरिया है, वहीं इस पर अश्लील सामग्री भी आसानी से उपलब्ध है। आज का युवा या तो रील बनाने के नाम पर अनैतिकता में लिप्त हो रहा है या इसे देखने और सुनने का आदी होता जा रहा है।
सरकार को इस संबंध में सख्त कानून और दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए। निजता की आजादी के नाम पर बेशर्मी की छूट नहीं होनी चाहिए। हमारे देश की अपनी नैतिक छवि है। इसे बचाए रखने की जरूरत है।
-दविंदर कुमार
