
नशा जनगणना: आज के पंजाब की नई तस्वीर
पिछले सप्ताह पंजाब में भगवंत मान के नेतृत्व वाली सरकार ने अपने कार्यकाल का चौथा बजट पेश किया, जिसमें करीब 2.4 लाख करोड़ रुपये का व्यय किया गया और कोई नया कर नहीं लगाया गया। वित्त मंत्री हरपाल चीमा ने कहा कि सीमा पार से नशीले पदार्थों और हथियारों की तस्करी को रोकने के लिए विशेष प्रयास किए जाएंगे। उन्होंने माना कि "नशे का प्रचलन पंजाब की प्रगति और समृद्धि के मार्ग में एक बड़ी बाधा है।
पिछले सप्ताह पंजाब में भगवंत मान के नेतृत्व वाली सरकार ने अपने कार्यकाल का चौथा बजट पेश किया, जिसमें करीब 2.4 लाख करोड़ रुपये का व्यय किया गया और कोई नया कर नहीं लगाया गया। वित्त मंत्री हरपाल चीमा ने कहा कि सीमा पार से नशीले पदार्थों और हथियारों की तस्करी को रोकने के लिए विशेष प्रयास किए जाएंगे। उन्होंने माना कि "नशे का प्रचलन पंजाब की प्रगति और समृद्धि के मार्ग में एक बड़ी बाधा है। हम नशे के खिलाफ युद्ध को और अधिक प्रभावी ढंग से लड़ने के लिए एक और ऐतिहासिक पहल कर रहे हैं। हमें इस युद्ध को केवल बल और हथियारों से ही नहीं, बल्कि डेटा और विश्लेषण के माध्यम से वैज्ञानिक रूप से भी लड़ना होगा।"
इस समस्या को प्रभावी ढंग से हल करने के लिए पंजाब सरकार ने पहली बार राज्य में "नशा जनगणना" कराने का फैसला किया है। इस अभियान के लिए 150 करोड़ रुपये की राशि रखी गई है। इसके तहत पंजाब के हर घर को कवर किया जाएगा और नशे के आदी लोगों के बारे में जानकारी एकत्र की जाएगी। इस तरह से एकत्र की गई जानकारी के आधार पर नशे की समस्या और इसके प्रभावी समाधान के लिए एक योजना तैयार की जाएगी। नशा आज के समय में वैश्विक समस्या है।
लेकिन गुरुओं, पीरों, योद्धाओं और देशभक्तों की धरती पंजाब को इतना 'हाइलाइट' क्यों किया जा रहा है, इस बारे में हर पंजाबी और पंजाब के प्रति संवेदनशील मन रखने वाले व्यक्ति को गंभीरता से सोचने की जरूरत है। हमारा पिछड़ा हुआ प्रांत हरियाणा खेलों में देशभर में सबसे आगे खड़ा है, जबकि इसका क्षेत्रफल और जनसंख्या पंजाब से कम है। आज हमारा पंजाब नशे के कारण कई क्षेत्रों में देश के कई राज्यों से पिछड़ गया है, जबकि कुछ दशक पहले देश का यह हरा-भरा और समृद्ध प्रदेश विश्व में अपना अलग स्थान रखता था। आज हमारी गलतियों पर 'उड़ता पंजाब' जैसी फिल्में बन रही हैं।
यह एक कटु सत्य है कि नशे के सेवन से हम उपहास और तिरस्कार का पात्र बन रहे हैं। हाल ही में पंजाब के माननीय राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी ने शराब के दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए 3 अप्रैल से 8 अप्रैल तक पैदल मार्च निकालने की घोषणा की है। उन्होंने इसमें शामिल होने के लिए राजनीतिक नेताओं और पंजाब का दर्द महसूस करने वाले लोगों को आमंत्रित किया है। सरकारों के प्रयास सराहनीय और आवश्यक हैं। लेकिन हमें इस बारे में गंभीरता से सोचने की जरूरत है।
जनगणना पर खर्च होने वाली 150 करोड़ की राशि या इस काम में लगाए जाने वाले मानव संसाधन को अगर राज्य के विकास कार्यों में लगाया जाता तो लोगों का कितना भला होता। आज पंजाब ने हर क्षेत्र में तरक्की की है, लेकिन नशा एक अभिशाप बन गया है। अगर 50 साल पहले के पंजाब को देखें तो शादियों में सिर्फ आधे आदमी ही शराब पीते थे और हर कोई उन्हें लंच के समय अपने साथ ले जाने से कतराता था, ताकि लड़की वालों को उनके नशे में होने का पता न चले।
लेकिन अब स्थिति यह है कि लड़कियां खुद ही शराब के ठेके लगाती हैं। हमारे समय में बच्चे शाम को खेतों की रेत में खेलते नजर आते थे, हम खेतों में जाकर किताबें पढ़ते थे। लेकिन अब गांव नशे की अभिशाप से ज्यादा प्रभावित हैं। आज हम अखबारों और अन्य मीडिया में पढ़ते हैं, कहीं कोई पीला पंजा चलाया गया, कहीं नशे की ओवरडोज से मौत हुई, कहीं नशे की बड़ी खेप पकड़ी गई।
हर पंजाबी के लिए यह खबर शर्म और दुख का कारण है। हमारे स्वतंत्रता सेनानियों, शहीदों और नेताओं ने ऐसे पंजाब की कल्पना नहीं की थी। आज जब दुनिया विकास की दौड़ में बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है, तो पंजाब को नशे की त्रासदी से गुजरते देखना दिल दहला देने वाला है। अजीब-अजीब खबरें सुनने को मिल रही हैं, बेटे ही नशे की गिरफ्त में आ रहे हैं, मां बुढ़ापे में मजदूरी कर रही हैं, बेटे नशा कर रहे हैं।
आइए हम सब मिलकर पंजाब को नशे की इस बुराई से मुक्त करने में अपना योगदान दें। मुझे ऑल इंडिया रेडियो जालंधर पर अक्सर बजने वाले लोकप्रिय गीत की पंक्तियां याद आ रही हैं-
"ओए भटके होए जवानों, क्या पकड़ा है, होश में आओ,
तुम चांद तक पहुंच गए हो, आज दुनिया वालों होश में आओ।
भगत सिंह की कसम खाकर और बस, बस इतना ही कहो
युवाओं के लिए 'डुबकी' मत लगाओ, ये भारत मां का गहना है"।
-दविंदर कुमार
