
आधुनिक समय में बाबा साहेब के सिद्धांतों की प्रासंगिकता
14 अप्रैल को पूरे देश में भारत रत्न बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की 134वीं जयंती मनाई गई। देश भर में विभिन्न कार्यक्रमों में उनके अमूल्य योगदान को याद किया गया। आज भी उन्हें भारतीय संविधान के मुख्य निर्माता, समाज सुधारक और दलित अधिकारों के समर्थक के रूप में जाना जाता है। उन्होंने जातिगत भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ी, सामाजिक समानता को बढ़ावा दिया और भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों की वकालत की। डॉ. अंबेडकर वह व्यक्ति थे जिन्होंने 30 वर्षों में 3000 वर्ष का इतिहास बदल दिया।
14 अप्रैल को पूरे देश में भारत रत्न बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की 134वीं जयंती मनाई गई। देश भर में विभिन्न कार्यक्रमों में उनके अमूल्य योगदान को याद किया गया। आज भी उन्हें भारतीय संविधान के मुख्य निर्माता, समाज सुधारक और दलित अधिकारों के समर्थक के रूप में जाना जाता है। उन्होंने जातिगत भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ी, सामाजिक समानता को बढ़ावा दिया और भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों की वकालत की। डॉ. अंबेडकर वह व्यक्ति थे जिन्होंने 30 वर्षों में 3000 वर्ष का इतिहास बदल दिया। उन्होंने शिक्षा, सेना, व्यापार और सामाजिक पदानुक्रम में उच्च जातियों के एकाधिकार को समाप्त कर दिया, जो स्वयं को शूद्रों या अछूतों से श्रेष्ठ मानते थे। उन्होंने दलितों के लिए जातिगत परंपराओं को तोड़ा, उनके प्रति समाज की मानसिकता को बदला और उन्हें शिक्षित होने तथा अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए कहा। देश के लिए संविधान बनाकर उन्होंने सभी को समान अधिकार दिए। वह अछूतों, भारतीय महिलाओं और श्रमिकों की सामाजिक स्थिति में सुधार करने में सफल रहे।
वर्तमान युग में संवैधानिक मूल्यों में विश्वास रखने वाले सभी राजनीतिक वर्ग डॉ. अंबेडकर को न्याय और सामाजिक जागृति के प्रतीक के रूप में उपयोग करते हैं। लगभग सभी राजनीतिक दल, विशेषकर चुनावों के दौरान, बाबासाहेब के नाम का उपयोग करते हैं। उनके नाम का इस्तेमाल दलित समुदाय के वोटों को प्रभावित करने के लिए किया जाता है। आज हर बड़े-छोटे शहर और कस्बे में बाबा साहेब की प्रतिमाएं और स्मारक देखे जा सकते हैं। दुनिया भर में उनके अनुयायियों द्वारा उनके नाम पर संगठन और संस्थाएं चलायी जा रही हैं। कोलंबिया विश्वविद्यालय में डॉ. अम्बेडकर की एक प्रतिमा है। इस प्रकार, उनकी प्रतिमा जापान के कोयासन विश्वविद्यालय में स्थापित की गई है। अगर पंजाब की बात करें तो यहां दलितों और पिछड़े वर्गों की आर्थिक स्थिति देश के बाकी हिस्सों के दलितों से बेहतर है। यहां भी इन वर्गों की बड़ी आबादी है, जो हमेशा राजनीतिक दलों की जीत-हार को प्रभावित करने में निर्णायक भूमिका निभाती है।
आज हमारे देश को आजाद हुए 77 साल से ज्यादा का समय बीत चुका है, लेकिन आज भी दलित समुदाय के लोगों ने सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक क्षेत्र में ज्यादा प्रगति नहीं की है। इन श्रेणियों के 80 प्रतिशत लोग अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। आर्थिक शोषण आज भी एक कड़वा सच है। इनमें से अधिकांश मजदूर और सीमांत कृषक हैं। आज, अधिकांश लोग कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं और अपना ऋण चुकाने के लिए बंधुआ मजदूर के रूप में काम कर रहे हैं। यद्यपि दलित समुदाय के अधिकारों के लिए बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर के नाम पर कुछ सरकारी और हजारों गैर-सरकारी संगठन देशभर में काम कर रहे हैं।
पंजाब, क्योंकि यह आर्थिक रूप से समृद्ध राज्य है और अनुसूचित जातियों तथा अन्य पिछड़ी जातियों का जीवन स्तर काफी बेहतर है, इसलिए यहां बाबा साहेब के नाम पर कई संगठन बने हैं। लेकिन यह बहुत दुःख की बात है कि जमीनी स्तर के संगठन अपने समुदायों के कल्याण के लिए शायद ही कुछ कर रहे हैं।
मैं सभी संगठनों को दोष नहीं देता, लेकिन कई संगठनों और समाजों के संस्थापकों ने न तो बाबा साहेब के संघर्ष को पढ़ा है और न ही उनके द्वारा लिखे गए साहित्य को। उनके लिए बाबा साहेब का नाम ही आजीविका का साधन बन गया है। हमारे वर्गों के अधिकांश नेता हमारे वोट जीतकर सत्ता हासिल करते हैं, लेकिन बाद में उनके वादे मंचों और घोषणापत्रों तक ही सीमित रह जाते हैं।
आज भी दलित समुदाय के अधिकार पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं। आज भी दफ्तरों में कर्मचारी जातिगत भेदभाव का शिकार हो रहे हैं। समय की मांग है कि हम, शिक्षित वर्ग, ईमानदारी से बाकी लोगों की आवाज बनें। यह डॉ. बी. आर. अंबेडकर जी की विरासत और सोच को संरक्षित करने का एक सही प्रयास होगा।
-दविंदर कुमार
