
पंजाब विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग ने योग की प्रासंगिकता पर व्याख्यान आयोजित किया
आज पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ के संस्कृत विभाग में योग विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया, जिसके मुख्य वक्ता निर्देशक दयानंदपीठ एवं अध्यक्षचर, संस्कृत विभाग महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक से प्रोफेसर सुरेंद्र थे ।
आज पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ के संस्कृत विभाग में योग विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया, जिसके मुख्य वक्ता निर्देशक दयानंदपीठ एवं अध्यक्षचर, संस्कृत विभाग महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक से प्रोफेसर सुरेंद्र थे ।
वर्तमान परिस्थितियों में योग की प्रासंगिकता पर अपने विचार अभिव्यक्त करते हुए प्रोफेसर सुरेंद्र ने कहा कि पतंजलि योग दर्शन के अनुशासक हैं इसलिए वे योग दर्शन के प्रारंभ में अथयोगानुशासन कहते हैं। उन्होंने युक्ति शास्त्र एवं अनुभूत शास्त्र का वर्णन करते हुए योग को अनुभूत शास्त्र कहा, क्योंकि यह पहले से अनुभूत था योग के प्राचीन वक्ता हिरण्यगर्भ है। चित्त की पांच भूमियों का विवेचन करते हुए उन्होंने क्षिप्त,मूढ, विक्षिप्त, संप्रज्ञात और निरोध का विवेचन किया।
उन्होंने कहा कि क्षिप्त अवस्था में मन एक विचार से दूसरे विचार और एक वस्तु से दूसरी वस्तु की ओर तेज़ी से आगे बढ़ता रहता है। मूढ अवस्था में मोह का उदय होता है रजोगुण और तमोगुण बढ़ जाते हैं मोह की अवस्था में भी चित्त उसी में भावित हो जाता है परंतु यह योग नहीं है विक्षिप्त अवस्था का विवेचन करते हुए उन्होंने कहा कि क्षिप्त से विशिष्ट अवस्था विक्षिप्त अवस्था है यहां पर आकर व्यक्ति अपना मार्ग निर्धारित कर लेता है और यहां से हम योग का आरंभ कर सकते हैं इस अवस्था में सत्वगुण प्रभावशाली रहता है|
परंतु यहां मध्य मध्य रजोगुण और तमोगुण का उतार चढ़ाव लगा रहता है जब मन की शांत स्थिति भंग होती है उसी को विक्षेप कहते हैं संप्रज्ञात का विवेचन करते हुए उन्होंने कहा कि इस समय चित्त की एकाग्र अवस्था में समाधि होती है सत्वगुण की प्रधानता होती है यह एकाग्रता की बहती धारा निर्विचार तक पहुंच जाती है यहां अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष अभिनिवेश आदि का क्षय होना शुरू हो जाता है इसके पश्चात निरोध की अवस्था में व्यक्ति पहुंचता है इस अवस्था में चित्त सत्व, राजो, तमोगुण से हट जाता है चित्त की इस अवस्था को असम्प्रज्ञात कहते हैं वृत्तियों पर अपने विचार अभिव्यक्त करते हुए उन्होंने प्रमाण, विपर्यय विकल्प, निद्रा स्मृति इन विषयों की विस्तृत जानकारी दी ।
कार्यक्रम के अंत में विभागाध्यक्ष महोदय प्रो. वीके अलंकार ने कहा कि योग की सिद्धि अभ्यास से हो सकती है इसीलिए हमें निरंतर अभ्यास करना चाहिए साथ ही उन्होंने कार्यक्रम के मुख्य वक्तानिदेशक दयानंद अध्ययन पीठ एवं अध्यक्ष महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक से प्रो. सुरेंद्र कुमार के प्रति धन्यवाद ज्ञापन किया और आगन्तुक अतिथियों शिक्षकों एवं छात्रों के प्रति भी आभार व्यक्त किया ।इस कार्यक्रम में विभाग के शिक्षक, छात्र तथा दयानंद पीठ से शोध छात्र भी उपस्थित रहे । संपूर्ण कार्यक्रम का संचालन डॉ. भारद्वाज ने किया ।
