
हिंदी भाषा का प्रचार और प्रसार नार्वे में
चंडीगढ़, दिनांक 03 मार्च, 2025- आज, दिनांक 03 मार्च, 2025 को पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के हिंदी-विभाग द्वारा ‘नार्वे में हिंदी भाषा का प्रचार और प्रसार’ विषय पर एक महत्वपूर्ण व्याख्यान का आयोजन किया गया।
चंडीगढ़, दिनांक 03 मार्च, 2025- आज, दिनांक 03 मार्च, 2025 को पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ के हिंदी-विभाग द्वारा ‘नार्वे में हिंदी भाषा का प्रचार और प्रसार’ विषय पर एक महत्वपूर्ण व्याख्यान का आयोजन किया गया।
इस कार्यक्रम में श्री सुरेश चंद्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ (President, Indo-Norwegian Information and Cultural Forum Member, Norsk Forfattersentrum (Norwegian Writers Centre), और Authors Guilds of India) मुख्य वक्ता के रूप में पधारे। कार्यक्रम की शुरुआत विभागाध्यक्ष प्रो. अशोक कुमार ने श्री सुरेश चंद्र शुक्ल का औपचारिक स्वागत करके की।
इसके बाद सुरेश चंद्र ने अपना व्याख्यान शुरू किया। उन्होंने नार्वे में हिंदी की स्थिति पर विस्तार से चर्चा की और कहा कि मातृभाषा के साथ-साथ अन्य भाषाओं को भी सीखना चाहिए। उनका मानना था कि दूसरी भाषा सीखने से हमारी अपनी भाषा खत्म नहीं होती, बल्कि यह हमें मानसिक रूप से परिपक्व बनाता है और विभिन्न संस्कृतियों को समझने का अवसर प्रदान करता है।
सुरेश चंद्र जी ने नार्वे देश की भौगोलिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति के बारे में भी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि हिंदी और नार्वेजियन भाषाओं में सांस्कृतिक संबंध मजबूत हो रहे हैं, और इसके उदाहरण स्वरूप उन्होंने बताया कि नार्वे में ‘SPEIL’ जैसी साहित्यिक पत्रिकाएँ प्रकाशित हो रही हैं, जो हिंदी और नार्वेजियन साहित्य को एक मंच पर लाती हैं।
इसके बाद, सुरेश चंद्र ने विद्यार्थियों के लिए अपने द्वारा लिखे कुछ गीत प्रस्तुत किए, जो विद्यार्थियों को बहुत पसंद आए। उन्होंने छात्रों से उनकी जिज्ञासाओं के बारे में भी पूछा, और छात्रों ने अपने सवालों को बड़ी उत्सुकता से सामने रखा। सुरेश चंद्र ने उन सवालों का उत्तर बहुत ही रोचक और प्रेरणादायक तरीके से दिया, जिससे छात्रों का उत्साह और बढ़ा। विभाग के विद्यार्थियों, सताक्षी, कनिका शर्मा, नारायण सिंह, पवन शर्मा और शोधार्थी किरण ने भी कार्यक्रम में अपनी प्रस्तुति दी, जिसमें उन्होंने विचार, गीत और कविताएं प्रस्तुत की।
इस कार्यक्रम में विद्यार्थियों ने हिंदी भाषा और साहित्य से संबंधित अनेक महत्वपूर्ण पहलुओं को समझा और उन्होंने हिंदी को एक अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में देखने की नई दृष्टि प्राप्त की। अंत में, विभागाध्यक्ष प्रो. अशोक कुमार ने श्री सुरेश चंद्र शुक्ल का धन्यवाद किया और कार्यक्रम का समापन हुआ। यह कार्यक्रम हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ और छात्रों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना।
