कार्ल मार्क्स की 207वीं जयंती पर मार्क्सवाद और फासीवाद की प्रासंगिकता पर चर्चा

जालंधर- कार्ल मार्क्स की 207वीं जयंती के अवसर पर आज देश भगत यादगार कमेटी द्वारा भाई संतोख सिंह 'कीर्ति' व्याख्यान श्रृंखला के अंतर्गत 'मार्क्सवाद की प्रासंगिकता' और 'फासीवाद का उदय' विषय पर गंभीर चर्चा की गई। चर्चा के अवसर पर देश भगत यादगार कमेटी के अध्यक्ष अजमेर सिंह, महासचिव पृथीपाल सिंह मरीमेघा, सांस्कृतिक विंग के संयोजक अमोलक सिंह और दोनों मुख्य वक्ता कमेटी सदस्य जगरूप और हरविंदर भंडाल मंच पर मौजूद रहे।

जालंधर- कार्ल मार्क्स की 207वीं जयंती के अवसर पर आज देश भगत यादगार कमेटी द्वारा भाई संतोख सिंह 'कीर्ति' व्याख्यान श्रृंखला के अंतर्गत 'मार्क्सवाद की प्रासंगिकता' और 'फासीवाद का उदय' विषय पर गंभीर चर्चा की गई। चर्चा के अवसर पर देश भगत यादगार कमेटी के अध्यक्ष अजमेर सिंह, महासचिव पृथीपाल सिंह मरीमेघा, सांस्कृतिक विंग के संयोजक अमोलक सिंह और दोनों मुख्य वक्ता कमेटी सदस्य जगरूप और हरविंदर भंडाल मंच पर मौजूद रहे।
चर्चा की शुरुआत कमेटी के महासचिव पृथीपाल सिंह मरीमेघा ने स्वतंत्रता संग्राम में ऐतिहासिक घटनाओं और नायकों पर प्रकाश डालते हुए की।
कार्ल मार्क्स की जयंती के अवसर पर 'मार्क्सवाद की प्रासंगिकता' विषय पर बोलते हुए समिति सदस्य जगरूप ने कहा कि मार्क्सवाद की प्रासंगिकता किसी भी संदेह का विषय नहीं है। इसकी प्रासंगिकता ने पूरे विश्व में अपनी प्रामाणिकता अर्जित की है। आध्यात्मिक दासता से मुक्ति का मार्गदर्शक होना ही मार्क्सवाद की प्रासंगिकता है। 
उन्होंने उन लोगों की आलोचना की जो पदार्थ को प्रथम स्थान मानते हुए गति को प्रधानता देते हैं। उन्होंने कहा कि केवल व्याख्या तक सीमित रहना ही मार्क्सवादी दृष्टि नहीं है, मार्क्स और एंगेल्स ने परिवर्तन का सिद्धांत सामने रखा। समाज की केवल व्याख्या ही पर्याप्त नहीं है, असली मुद्दा इस व्यवस्था को बदलना है। 
ज्ञान, विज्ञान, शोध का अपना स्थान हो सकता है, लेकिन मार्क्सवादी विचारधारा के विद्वानों का स्थान हर किसी को देना निश्चित रूप से उचित नहीं है। जागरूक मजदूर वर्ग एक ऐसी शक्ति है जो जीत का मार्ग खोलती है। जगरूप ने कहा कि एक धड़ा ऐसा भी है जो चिल्लाता है कि मार्क्सवाद का समय बीत चुका है। उन्होंने कहा कि क्या 'सत्य' का समय कभी बीत सकता है? कभी नहीं। 
पूंजीवाद को दरअसल यह डर अंदर ही अंदर खाए जा रहा है कि अगर मजदूर वर्ग और सभी मेहनतकश लोग मार्क्सवादी समझ में आ गए तो वे लूट और जबरदस्ती पर आधारित राज्य व्यवस्था को पूरी तरह से पलट देंगे। संकट में पूंजीवाद लोगों पर बोझ डालना शुरू कर देता है और एक ऐसे बिंदु पर अटक जाता है जहां वह दूसरे बाजारों को हड़पने के लिए अन्यायपूर्ण युद्धों का सहारा लेता है। 
उन्होंने कहा कि जब पूंजीवादी संकट अपने चरम पर पहुंच जाता है तो वह ऐसे बिंदु पर फंस जाता है जहां से उसके पास निकलने का कोई रास्ता नहीं होता। ऐसी स्थिति में विद्रोह और वर्ग संघर्ष पैदा होता है। हरविंदर भंडाल ने जोर देकर कहा कि हमें फासीवाद की घटना के फैलते पंजों से सावधान रहने की जरूरत है, अन्यथा बहुत भयानक स्थितियां हमारी सांसें रोकने के लिए सामने आएंगी। 
उन्होंने कहा कि नस्लवाद का कोहरा पैदा करने वाला और लोगों पर क्रोध की आग बरसाने वाला फासीवाद खुद ही बरी हो जाता है और लोगों का ध्यान असली मुद्दों से हटाकर अपना उल्लू सीधा करता है। उन्होंने कहा कि यह भी एक सच्चाई है कि फासीवाद लोगों से ज्यादा मजबूत नहीं है लेकिन लोगों को जागरूक होकर संघर्ष करने की जरूरत है।