
पलायन की लालसा - एक अप्रत्याशित पीड़ा
गरीब और अर्ध-विकसित देशों में रहने वाले लोगों की आर्थिक कठिनाइयों ने उन्हें हमेशा विकसित पश्चिमी और अरब देशों में पलायन करने के लिए मजबूर किया है। विदेशों में बसने की भारतीयों की इच्छा दशकों पुरानी है। विज्ञापन और मीडिया के दुनिया के कोने-कोने में फैलने के कारण यह इच्छा कई गुना बढ़ गई है।
गरीब और अर्ध-विकसित देशों में रहने वाले लोगों की आर्थिक कठिनाइयों ने उन्हें हमेशा विकसित पश्चिमी और अरब देशों में पलायन करने के लिए मजबूर किया है। विदेशों में बसने की भारतीयों की इच्छा दशकों पुरानी है। विज्ञापन और मीडिया के दुनिया के कोने-कोने में फैलने के कारण यह इच्छा कई गुना बढ़ गई है।
हमारे देश में जनसंख्या की विस्फोटक वृद्धि, रोजगार के घटते अवसर और विदेशी चकाचौंध ने लोगों में प्रवास की इच्छा को इतना प्रबल बना दिया है कि वे हर तरह के वैध और अवैध तरीके अपनाकर विदेश जाना चाहते हैं। लोगों की इस भूख को देखते हुए ट्रैवल एजेंटों ने हर छोटे-बड़े शहर और कस्बे में धड़ल्ले से दुकानें खोल ली हैं। विदेशों में बसने और आजीविका कमाने के लिए बेताब लोगों के साथ धोखाधड़ी के मामले आम हो गए हैं। भारत में ट्रैवल एजेंट के घोटाले कोई नई बात नहीं है, लेकिन इन घटनाओं से सीख लेने की बजाय लोग तेजी से उनके झांसे में आ रहे हैं।
अवैध रूप से विदेश यात्रा करने की प्रवृत्ति अक्सर खतरनाक साबित होती है और इस तरह लोगों को दूसरे देशों में जाने में कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इन दिनों एक नया पाठ सुनने को मिल रहा है, "डुंकी लगाना"। सरल शब्दों में कहें तो यह विदेश जाने का एक अवैध तरीका है। दूसरे दिन अमेरिका से लौटे युवाओं ने अपनी यात्रा की दिल दहला देने वाली कहानियां सुनाईं। उन्हें घने जंगल, ठंडे मौसम, समुद्री लुटेरे, सांप, भूख और मौत का खतरा झेलना पड़ा। महीनों तक अनगिनत मुश्किलों का सामना करने के बाद वे अमेरिका की धरती पर पहुंचे, लेकिन जल्द ही उनके रंगीन सपने टूट गए। अमेरिका में प्रवेश करने के कुछ दिनों के भीतर ही उन्हें अधिकारियों ने पकड़ लिया।
अब तक तीन सैन्य विमानों में 300 से अधिक भारतीय नागरिकों को हथकड़ी और बेड़ियों में जकड़ कर भारत वापस भेजा जा चुका है। आश्चर्य की बात यह है कि वापस लौटे इन लोगों में महिलाएं और नाबालिग बच्चे भी शामिल हैं। प्रत्येक व्यक्ति औसतन करीब 50 लाख रुपये गंवाकर लौटा है। कई लोगों ने अपनी जमीनें और गहने बेच दिए, रिश्तेदारों से पैसे उधार लिए और आज सब कुछ गंवाकर समाज की नजरों में अपराधी और उपहास का पात्र बन गए हैं। ऐसी घटनाएं वैश्विक स्तर पर देश की छवि को धूमिल करती हैं। भारत को छोड़कर हर देश के कानून बिना दस्तावेज वाले विदेशियों के लिए सख्त हैं।
अमेरिका जैसे देशों से अवैध अप्रवासियों को वापस भेजने की घटनाएं नई नहीं हैं। बराक ओबामा के राष्ट्रपति काल में 25 लाख से अधिक अवैध अप्रवासियों को वापस भेजा गया था। इस तरह लाखों रुपए गंवाकर विदेश से युवाओं का वापस लौटना तत्कालीन सरकारों पर कई सवाल खड़े करता है। अगर हमारे अपने देश में ही अच्छे रोजगार के अवसर उपलब्ध होते तो हमारी युवा पीढ़ी को विदेश नहीं जाना पड़ता। हालांकि सरकारें लाखों की संख्या में रोजगार देने का वादा करती हैं, लेकिन हकीकत कुछ और ही है।
अधिकांश प्राथमिक विद्यालयों में पांच कक्षाओं को चलाने और पढ़ाने के लिए केवल एक शिक्षक है। पंजाब में करीब 45 फीसदी सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल बिना प्रिंसिपल के चल रहे हैं। यही हाल केंद्र सरकार के कार्यालयों का भी है। जो भी सेवानिवृत्त होता है या दूसरी जगह स्थानांतरित होता है, उसका पद सालों तक खाली रहता है या समाप्त कर दिया जाता है।
सरकारों को देश भर में चल रहे 'आव्रजन उद्योग' पर लगाम कसने की जरूरत है। विदेश से लौटे लोगों के पुनर्वास के लिए प्रभावी कदम उठाए जाने की जरूरत है ताकि निराश हो चुके परिवारों को सहारा मिल सके।
दविंदर कुमार
