संत श्री रविदास जी: मानवता की ज्योति

संत श्री रविदास जी भक्ति आंदोलन के महान संत, आध्यात्मिक ऋषि और समाज सुधारक थे। उन्होंने अपने उच्च आदर्शों, पवित्र शिक्षाओं और जीवन मूल्यों के माध्यम से मानवता को एक नई दिशा दी। उनका पूरा जीवन सामाजिक बुराइयों को मिटाने, आध्यात्मिक उत्थान, भाईचारे और प्रेम का संदेश देने में बीता। संत श्री रविदास जी की भक्ति और उनकी शिक्षाएँ आज भी मानवता के लिए प्रेरणादायी हैं।

संत श्री रविदास जी भक्ति आंदोलन के महान संत, आध्यात्मिक ऋषि और समाज सुधारक थे। उन्होंने अपने उच्च आदर्शों, पवित्र शिक्षाओं और जीवन मूल्यों के माध्यम से मानवता को एक नई दिशा दी। उनका पूरा जीवन सामाजिक बुराइयों को मिटाने, आध्यात्मिक उत्थान, भाईचारे और प्रेम का संदेश देने में बीता। संत श्री रविदास जी की भक्ति और उनकी शिक्षाएँ आज भी मानवता के लिए प्रेरणादायी हैं। 

उनका जन्म 15वीं शताब्दी में उत्तर भारत के काशी (वर्तमान वाराणसी, उत्तर प्रदेश) शहर में हुआ था। उनके जन्म के बारे में कई किंवदंतियाँ प्रचलित हैं, लेकिन उनके जीवन और उच्च आदर्शों ने यह साबित कर दिया कि उनकी महानता उनके जन्म या सामाजिक पृष्ठभूमि से नहीं, बल्कि उनके कर्मों और शिक्षाओं से निर्धारित होती है। संत श्री रविदास जी का मानना था कि कोई भी व्यक्ति अपने आध्यात्मिक और नैतिक गुणों के माध्यम से उच्च पद पर पहुँच सकता है। अपने उपदेशों के माध्यम से उन्होंने सिखाया कि मानवता, प्रेम और आध्यात्मिक पवित्रता ही मानव जीवन के सच्चे गुण हैं। 

उनकी भक्ति केवल ईश्वर प्राप्ति तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि उन्होंने आम लोगों में भाईचारे, समानता और सत्य की चेतना जागृत की। उनके 40 पवित्र शब्द संत श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी महाराज में दर्ज हैं, जो उनकी आध्यात्मिक ऊंचाई और उनके उपदेशों की महानता को दर्शाते हैं। उनके शब्द आज भी पूरे विश्व में मानवता के लिए मार्गदर्शक के रूप में काम कर रहे हैं। संत श्री रविदास जी ने सिखाया कि जो व्यक्ति अपने जीवन में सम्मान, दया, करुणा और प्रेम को अपनाता है, वह वास्तव में आध्यात्मिक पथ पर चलता है। 

उन्होंने समाज में व्याप्त भेदभाव और जातिवाद को हमेशा नकारा। उनकी उच्च सोच "ऐसा चाहू राज मैं, जहां मिली सबन को अन" में प्रकट होती है। संत श्री रविदास जी एक ऐसा समाज चाहते थे जहां सभी समान हों, जहां कोई भी श्रेष्ठ या निम्न न समझा जाए, जहां सभी को आध्यात्मिक और सामाजिक स्वतंत्रता मिले। उनकी यह आकांक्षा समानता के प्रति उनके दृढ़ संकल्प को दर्शाती है। 

उन्होंने यह भी सिखाया कि कर्म ही व्यक्ति की पहचान है। "कर्म बिंदु ते जाति उपजै" वाक्यांश से पता चलता है कि व्यक्ति अपने जन्म से नहीं, बल्कि अपने अच्छे कर्म से ऊंचा बन सकता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि ईश्वर व्यक्ति को उसके कर्म के अनुसार ही मिलते हैं। यह संदेश न केवल संत श्री रविदास जी के समय में महत्वपूर्ण था, बल्कि आज भी इसकी उतनी ही आवश्यकता है।

उन्होंने "बेगमपुरा" की कल्पना की, जो सामाजिक न्याय के प्रति उनके दृढ़ संकल्प और उनकी आदर्श व्याख्या को दर्शाता है। बेगमपुरा वह आदर्श स्थान है, जहाँ किसी भी प्रकार का अन्याय, दर्द, पीड़ा या भेदभाव नहीं है। यह उनके आदर्श विश्वासों की पूरी तस्वीर प्रस्तुत करता है।

संत श्री रविदास जी की विरासत आज भी जीवित है। उनकी शिक्षाएँ, उनकी भक्ति और उनकी आध्यात्मिकता आज भी लोगों को ज्ञान देती है। उनकी विरासत हमें सिखाती है कि साहस, परिश्रम और सदाचार से भरा जीवन जीना ही सच्ची मानवता है।

श्री रविदास जी ने जो प्रकाश फैलाया वह हमेशा चमकता रहेगा। उनकी शिक्षाएँ हमारे लिए केवल आध्यात्मिक मार्ग ही नहीं हैं, बल्कि जीवन जीने का एक संपूर्ण तरीका भी हैं। यदि हम उनकी शिक्षाओं का पालन करें, तो हम एक समतावादी, प्रेमपूर्ण और नैतिक दुनिया बना सकते हैं। संत श्री रविदास जी की पवित्र शिक्षाएँ हमें सही जीवन जीने का मार्ग देती हैं।

- देविंदर कुमार