गर्मी और पेड़

मौसम गर्मी का चल रहा है और हर इंसान और जीव-जंतु भयानक गर्मी की मार से परेशान हैं। हम हीटवेव या गर्म लू की बात कर रहे हैं। भारतीय मौसम विभाग ने देशभर के कई राज्यों में गर्म लू की चेतावनी जारी की है। लू का साधारण शब्दों में मतलब है औसत तापमान का बहुत ज्यादा बढ़ना। यह बढ़ा हुआ तापमान अक्सर मई-जून के महीनों में देखा जाता है,

मौसम गर्मी का चल रहा है और हर इंसान और जीव-जंतु भयानक गर्मी की मार से परेशान हैं। हम हीटवेव या गर्म लू की बात कर रहे हैं। भारतीय मौसम विभाग ने देशभर के कई राज्यों में गर्म लू की चेतावनी जारी की है। लू का साधारण शब्दों में मतलब है औसत तापमान का बहुत ज्यादा बढ़ना। यह बढ़ा हुआ तापमान अक्सर मई-जून के महीनों में देखा जाता है, लेकिन कई बार जुलाई महीने में भी लू का प्रकोप जारी रहता है। इसका असर हर इलाके में अलग-अलग हो सकता है। मौसम विभाग के अनुसार, जब मैदानी इलाकों का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाए तो लू चलने लगती है और पहाड़ी क्षेत्रों में 30 डिग्री सेल्सियस तापमान पर भी लू चलने लगती है। आजकल भारत के कई राज्यों में दिन का तापमान 45 डिग्री से ज्यादा सुनने को मिल रहा है, जिसे भारतीय मौसम विभाग ने खतरनाक श्रेणी में शामिल किया है। इसका असर मनुष्यों, जीव-जंतुओं और पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। ऐसा गर्म मौसम बच्चों, बुजुर्गों और पहले से बीमार लोगों के लिए घातक हो सकता है। इस मौसम में सूखा, जंगलों में आग आदि की घटनाएं आम देखने को मिलती हैं।

इस भयानक मौसमी परिवर्तन की मार भी शायद इंसान ही झेल रहा है। रोजाना इस तरह की खबरें सुनने को मिल रही हैं कि इस राज्य में हीट वेव से इतनी मौतें हो गई हैं या इस इलाके में जंगल की आग बेकाबू होकर इंसानी बस्तियों की ओर बढ़ रही है। सूखा या दिनों दिन तापमान का बढ़ना इंसानी गलतियों का नतीजा है। प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने के लिए पेड़ बहुत जरूरी हैं। पर मनुष्य समाज और पर्यावरण पर इसके बुरे प्रभावों को देखे समझे बिना पेड़ों और जंगलों की अंधाधुंध कटाई कर रहा है। सड़कों को चौड़ी करने और पुलों के निर्माण की होड़ में पेड़ बड़े पैमाने पर काटे जा रहे हैं। गांवों की गलियां, नहरों और नालों के किनारों का श्रृंगार छायादार पेड़ लगातार गायब हो रहे हैं।

बढ़ती आबादी और मनुष्य की बेमतलब इच्छाओं ने पर्यावरण को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। हरे-भरे खेतों और जंगलों की कटाई करके ऊंची इमारतें, मॉल और औद्योगिक इकाइयां बनाकर प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ दिया है। आज हर इंसान एक से ज्यादा घरों का मालिक होना चाहता है, इसे एक बड़े सामाजिक रुतबे की निशानी माना जा रहा है। जंगलों और पेड़ों की कटाई इंसान की भूख का नतीजा है। जंगली जीव मर रहे हैं, उनके प्राकृतिक आवास उजड़ रहे हैं, असली वनस्पति और जीव-जंतु खत्म हो रहे हैं। पर्यावरण में घातक बदलाव हो रहे हैं और मानव जीवन परेशान हो रहा है। वर्तमान समय की यह मांग है कि हम इस धरती को इंसानों और जीव-जंतुओं के जीवन के अनुकूल बनाए रखने के लिए पेड़ों को बचाएं। पेड़ सिर्फ अखबारों में फोटो छपवाने के लिए न लगाएं बल्कि उनकी लंबे समय तक देखभाल का प्रबंध भी करें। जंगलों की कटाई अंधाधुंध तरीके से तेजी से तबाही की ओर ले जा रही है। पिछली सदी में धरती हरे-भरे जंगलों से ढकी हुई थी, पर मौजूदा समय में 80% तक जंगलों को काटकर खत्म कर दिया गया है। कागज की जरूरत को पूरा करने के लिए हमें पुरानी चीजों को रीसायकल करने की आदत डालनी चाहिए। इससे नए पेड़ों की कटाई रुकेगी। हर इंसान को यह प्रण लेना चाहिए कि वह अपने जीवन में ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाए और उनकी देखभाल करे।

- देविंदर कुमार