स्वामी दयानन्द ने सबको सत्य के अन्वेषण में प्रवृत्त किया : प्रो. विभा अग्रवाल

चंडीगढ़, 28 फरवरी 2024:- पंजाब विश्वविद्यालय के दयानन्द वैदिक अध्ययन पीठ ने एक-दिवसीय राष्ट्रिय संगोष्ठी का आज 27.2.24 को आयोजन किया, जिसका विषय था ‘दयानन्द-निगदित वैदिक धर्म की स्वरूप-मीमांसा’। संगोष्ठी की अध्यक्षता व मुख्य वक्तव्य प्रस्तुति द्वारा कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की प्रो. विभा अग्रवाल ने, तथा ‘सारस्वत अतिथि’ के रूप में पंचकुला से आए वैदिक प्रवक्ता डॉ. रमेश बावा ने संगोष्ठी को सुशोभित किया।

चंडीगढ़, 28 फरवरी 2024:- पंजाब विश्वविद्यालय के दयानन्द वैदिक अध्ययन पीठ ने एक-दिवसीय राष्ट्रिय संगोष्ठी का आज 27.2.24 को आयोजन किया, जिसका विषय था ‘दयानन्द-निगदित वैदिक धर्म की स्वरूप-मीमांसा’। संगोष्ठी की अध्यक्षता व मुख्य वक्तव्य प्रस्तुति द्वारा कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की प्रो. विभा अग्रवाल ने, तथा ‘सारस्वत अतिथि’ के रूप में पंचकुला से आए वैदिक प्रवक्ता डॉ. रमेश बावा ने संगोष्ठी को सुशोभित किया। दयानन्द वैदिक अध्ययन पीठ व संस्कृत विभाग (पीयू) के अध्यापकों, शोधछात्रों व छात्रों ने इस संगोष्ठी में भाग लिया। इसके साथ ही अन्य शैक्षणिक संस्थानों से भी विद्वान् उपस्थित रहे।

प्रो. वी. के. अलंकार ने अपने उद्घाटन वक्तव्य में कहा, “वे सब सिद्धान्त, चाहे बौद्ध हो, सिख हो, जैन हो या अन्य हो, यदि वे मनुष्य को मनुष्य बनाने का काम करते हैं, तो वे धार्मिक ही हैं।” प्रो. अलंकार ने आगे कहा, “धर्म के लिए विचार और विमर्श बहुत आवश्यक है।” उन्होंने यह भी बताया कि स्वामी दयानन्द ने न्याय के और सत्य के आचरण को धर्म माना है।

प्रो. विभा अग्रवाल ने अपने वक्तव्य में कहा, “स्वामी दयानन्द ने सत्य के अन्वेषण में सबको प्रवृत्त किया।” अनेक शास्त्रों से धर्म की परिभाषा बताते हुए प्रो. अग्रवाल ने बताया, “स्वामी दयानन्द ने बताया कि धर्म के घटक के रूप में कर्म, उपासना और ज्ञान विद्यमान हैं, जिनसे इस लोक में समृद्धि और अन्ततः मोक्ष की प्राप्ति होती है।” उन्होंने आगे बताया, “स्वामी दयानन्द के प्रतिपादित वैदिक धर्म के अन्तर्गत सत्य बोलना, विद्या प्राप्त करना, ईश्वर का ज्ञान करना, कर्म से वर्ण व अच्छा आचरण, ये सब हैं।”

अपने वक्तव्य में डॉ. रमेश बावा ने श्रोताओं को धर्म-शब्द के निर्वचन व प्रयोग के विषय में बताया।        डॉ. बावा ने कहा, “केवल चिह्नों को धारण करना धर्म नहीं, अपितु सही कर्म व व्यवहार करना धर्म है।”         डॉ. बावा ने आगे बताया, “धर्म के लिए वेद ही परमप्रमाण है।” उन्होंने यह भी बताया कि स्वामी दयानन्द ने ईश्वरीय ज्ञान व मोक्ष प्राप्त करने को मनुष्यमात्र का परमधर्म प्रतिपादित किया है।

इस संगोष्ठी में डॉ. सुषमा अलंकार, डॉ. विक्रम, डॉ. विजय भारद्वाज, अंशुल चौधरी, संदीप व अपूर्व ने शोधपत्र प्रस्तुत किए। मंच का संचालन संस्कृत विभाग के अध्यापक डॉ. विजय भारद्वाज ने किया। यह आयोजन स्वामी दयानन्द की 200वीं जन्मजयन्ती उत्सव के उपलक्ष्य में किया गया।