
मजदूर व युवा संगठनों ने मनाया अंतरराष्ट्रीय कामकाजी महिला दिवस
चंडीगढ़- फैक्ट्री वर्कर्स यूनियन चंडीगढ़ व नौजवान भारत सभा ने हल्लोमाजरा में अंतरराष्ट्रीय कामकाजी महिला दिवस (8 मार्च) मनाया। इस अवसर पर क्षेत्र की महिलाओं व युवाओं ने मार्च निकालकर लोगों को जागरूक किया। दिवस के अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि आज अंतरराष्ट्रीय कामकाजी महिला दिवस केवल उपहार देने व लेने, पार्टियां करने, शॉपिंग मॉल में महिलाओं के लिए शॉपिंग करने व डिस्काउंट तक सीमित रह गया है, लेकिन आज यह नहीं बताया जाता कि यह दिन महिला मजदूरों के संघर्षों का प्रतीक है।
चंडीगढ़- फैक्ट्री वर्कर्स यूनियन चंडीगढ़ व नौजवान भारत सभा ने हल्लोमाजरा में अंतरराष्ट्रीय कामकाजी महिला दिवस (8 मार्च) मनाया। इस अवसर पर क्षेत्र की महिलाओं व युवाओं ने मार्च निकालकर लोगों को जागरूक किया। दिवस के अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि आज अंतरराष्ट्रीय कामकाजी महिला दिवस केवल उपहार देने व लेने, पार्टियां करने, शॉपिंग मॉल में महिलाओं के लिए शॉपिंग करने व डिस्काउंट तक सीमित रह गया है, लेकिन आज यह नहीं बताया जाता कि यह दिन महिला मजदूरों के संघर्षों का प्रतीक है।
कामकाजी महिलाओं के इन्हीं संघर्षों के कारण ही महिलाओं को दुनिया में पहली बार वोट देने का अधिकार मिला। महिलाओं की बहादुरी व संघर्षों के प्रतीक अंतरराष्ट्रीय कामकाजी महिला दिवस 8 मार्च के गौरवशाली इतिहास पर चर्चा की गई। महिलाओं ने अपने हकों के लिए खुद ही लड़ाई लड़ी और समाज में हर तरह के शोषण, उत्पीड़न व अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई।
आज तक जितने भी सामाजिक बदलाव हुए हैं, उनमें महिलाओं की बराबर की भागीदारी रही है। हमें उन बहादुर कामकाजी महिलाओं से प्रेरणा लेने और आज भी संघर्ष करने की जरूरत है क्योंकि भारत जैसे पिछड़े देश में आज जब हम 'महिला' शब्द का इस्तेमाल करते हैं, तो हमारे समाज में जब हम 'महिला' शब्द का इस्तेमाल करते हैं, तो हम अनिवार्य रूप से परिवार, जिम्मेदारी, सम्मान, विवाह, रीति-रिवाज, उत्तराधिकारी पैदा करना आदि जैसे शब्दों को जोड़ते हैं।
हमारे समाज में महिलाओं को केवल मांस और खून का टुकड़ा माना जाता है। हमारे समाज में महिलाओं को पुरुषों के बराबर इंसान होने का दर्जा भी नहीं है। हमारे समाज में महिलाओं की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। महिलाओं के खिलाफ अपराध दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। बलात्कार, दहेज हत्या और उत्पीड़न आम खबरें हैं। अगर कामकाजी महिलाओं की बात करें तो हालात और भी बदतर हैं।
उन पर काम का दोहरा बोझ है। बच्चे को जन्म देना, उसका पालन-पोषण करना, परिवार की देखभाल करना; इन सबके बाद उन्हें कठिन परिस्थितियों में काम करने के लिए बाहर जाना पड़ता है। उन्हें कारखानों में सस्ते मजदूर के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
कारखानों में सुरक्षा के कोई उपाय नहीं हैं। पुरुषों के बराबर वेतन, छुट्टियों का वेतन, गर्भावस्था के दौरान छुट्टी आदि का कोई प्रावधान नहीं है। घरों में पीस रेट पर काम करने वाली महिलाओं पर कोई श्रम कानून लागू नहीं होता है और न ही उनके काम के घंटे तय होते हैं। आज के समय में महिलाओं को परम्परागत बेड़ियों को तोड़कर अपने अधिकारों के लिए एकजुट होने की जरूरत है।
उन्हें समाज में चल रहे वर्ग संघर्ष में अपने पुरुष साथियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ना होगा और इस संघर्ष को निर्णायक निष्कर्ष पर पहुंचाकर समाजवाद के निर्माण का प्रयास करना होगा।
