'कुल दुनिया ते झंडा बुलंद रहू पंजाबी दा' गीत सरकारी आयोजनों की शान बना - बलजिंदर मान

होशियारपुर- साहित्यिक गीत लेखन, लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त एस. अशोक भौरा द्वारा रचित एक नया गीत साहित्यिक और सांस्कृतिक जगत में चर्चा का विषय बन गया है।

होशियारपुर- साहित्यिक गीत लेखन, लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त एस. अशोक भौरा द्वारा रचित एक नया गीत साहित्यिक और सांस्कृतिक जगत में चर्चा का विषय बन गया है।
'कुल दुनिया ते झंडा बुलंद रहू पंजाबी दा' एक ऐसा गीत है जो स्कूलों की प्रार्थनाओं और सभी सरकारी आयोजनों की शान बनने की क्षमता रखता है। मातृभाषा पंजाबी के प्रचार और सम्मान को बढ़ावा देने वाला यह गीत दुनिया भर में पसंद और आदर का पात्र बन रहा है।
यह विचार शिरोमणि बाल साहित्य के लेखक बलजिंदर मान ने सुर संगम एजुकेशनल ट्रस्ट द्वारा पंजाबी गीतों पर आयोजित एक सेमिनार में व्यक्त किए। उन्होंने आगे कहा कि ऐसे गीतों को नई पीढ़ी तक पहुँचाना हम सभी की ज़िम्मेदारी है ताकि वे अपनी समृद्ध विरासत को संजोकर रख सकें।
अभिनेता निर्देशक अशोक पुरी, जिला अनुसंधान अधिकारी डॉ. जसवंत राय और नई कलम नई उड़ान परियोजना प्रभारी ओंकार सिंह तेजे ने कहा कि अशोक भौरा ने दर्जनों पुस्तकों के साथ पंजाबी साहित्य को समृद्ध किया है और गीत लेखन के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय प्रगति की है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मातृभाषा के प्रचार और प्रसार को बढ़ावा देने वाला यह गीत सरकारी साहित्यिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शोभा बनने में सक्षम है।
इस गीत की विशेष समीक्षा करते हुए राज्य पुरस्कार प्राप्त शिक्षक अजय कुमार खटकड़, नितिन सुमन, प्रदीप सिंह मौजी और जसवीर सिद्धू और डॉ. केवल राम ने कहा कि इस गीत पर बच्चों की बहुत प्रभावी कोरियोग्राफी की जा सकती है। यह गीत जहां बच्चों में मातृभाषा के प्रति प्रेम पैदा करता है, वहीं उनमें नए और स्वस्थ सपने भी बोता है। वे सपने कड़ी मेहनत और कमाई के माध्यम से आपसी एकता, एकजुटता और ईमानदारी के हैं।
इसलिए, ट्रस्ट दृढ़ता से मांग करता है कि इस गीत को सरकारी कार्यक्रमों में शामिल करने के लिए शिक्षा विभाग द्वारा एक पत्र जारी किया जाए। पूर्व शिक्षा अधिकारी बग्गा सिंह आर्टिस्ट ने इस विचार को विस्तार देते हुए कहा कि भौरा का सांस्कृतिक योगदान लासानी है, जिन्होंने दोआबा में शौंकी मेले की शुरुआत के साथ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के युग से पहले पंजाबी संस्कृति को महानता प्रदान की।
संस्कृति प्रेमियों के दिलों में उनके लिए अपार सम्मान है। सुखमन सिंह ने बताया कि इस गीत के संगीतकार अफजल साहिर और अशोक भौरा हैं। गाखल ग्रुप की इस संगीतमय प्रस्तुति में सत्ती पाबला और बीबा फलक एजाज की गायकी का जादू सिर चढ़कर बोला। संगीतकार अली हैदर टीपू की संगीतमय धुनें इस गीत के फिल्मांकन के साथ सभी को झूमने पर मजबूर कर देती हैं।
इस अवसर पर अंजू वी. रत्ती, हरजिंदर सिंह, कमलेश कौर संधू, प्रोमिला देवी, पुरस्कार विजेता वंदना हीर, मनजिंदर कुमार, दलजीत कौर, हरमनप्रीत कौर, मनजीत कौर, हरवीर मान, निधि अमन सहोता, कुलदीप कौर बैंस और अन्य संगीत प्रेमियों ने भाग लिया।