
आदिवासियों की हत्याओं व विस्थापन के खिलाफ फासीवाद विरोधी फ्रंट ने किया प्रदर्शन
नवांशहर 27 फरवरी- केंद्र की मोदी सरकार व कई राज्य सरकारों द्वारा आदिवासियों के किए जा रहे विस्थापन व हत्याओं के खिलाफ फासीवाद विरोधी फ्रंट जिला शहीद भगत सिंह नगर ने नवांशहर में प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के बाद देश के राष्ट्रपति के नाम एक ज्ञापन डिप्टी कमिश्नर को सौंपा गया।
नवांशहर 27 फरवरी- केंद्र की मोदी सरकार व कई राज्य सरकारों द्वारा आदिवासियों के किए जा रहे विस्थापन व हत्याओं के खिलाफ फासीवाद विरोधी फ्रंट जिला शहीद भगत सिंह नगर ने नवांशहर में प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के बाद देश के राष्ट्रपति के नाम एक ज्ञापन डिप्टी कमिश्नर को सौंपा गया।
इससे पहले भाकपा(माले) न्यू डेमोक्रेसी के नेता कामरेड कुलविंदर सिंह वड़ैच, भाकपा नेता कामरेड नरंजन दास व आरएमपीआई नेता कुलदीप सिंह डुरका ने स्थानीय बस स्टैंड पर एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि मोदी सरकार व राज्य सरकारें अपने घरेलू व विदेशी हितों के लिए छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक आदि राज्यों के जंगलों व पहाड़ों के नीचे छिपे कीमती खनिजों का दोहन करने की कोशिश कर रही हैं। वे कॉरपोरेट्स को कौड़ियों के दाम लूटना चाहते हैं।
अगर कॉरपोरेट्स जंगलों व पहाड़ों को नष्ट करेंगे तो बड़े पैमाने पर आदिवासी भी नष्ट हो जाएंगे। इसीलिए आदिवासी अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनके संघर्ष को दबाने के लिए आदिवासियों को माओवादी बताकर मारा जा रहा है। भारत के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बार-बार बयान दे रहे हैं कि मार्च 2026 तक देश से माओवादियों का सफाया कर दिया जाएगा। ऐसा बयान देकर अमित शाह दरअसल आदिवासियों के विनाश और हत्या का ऐलान कर रहे हैं। नेताओं ने कहा कि यह कैसी सरकार है जो अपने ही बच्चों को मार रही है।
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार को आदिवासियों के विनाश और हत्या का कड़ा विरोध करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अकेले छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर संभाग में 277 सीआरपीएफ कैंप और 50 बीएसएफ कैंप हैं। सरकार ने यहां 6000 अर्धसैनिक बल के जवान तैनात किए हैं। और भी तैनात किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा बल प्रयोग घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन है। इन सरकारों की जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिए।
उन्होंने आदिवासी इलाकों से सुरक्षा बलों को पूरी तरह हटाने, राजनीतिक कैदियों और बुद्धिजीवियों की रिहाई, गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम को खत्म करने, सभी संगठनों पर लगे प्रतिबंधों को हटाने, आदिवासियों और अन्य लोगों के फर्जी पुलिस मुठभेड़ों पर तत्काल रोक लगाने, खनिज समृद्ध पहाड़ी और वन क्षेत्रों को देशी-विदेशी कॉरपोरेट्स को सौंपने पर रोक लगाने, इस उत्पीड़न का विरोध करने वाले संगठनों, पार्टियों, राजनीतिक और लोकतांत्रिक कार्यकर्ताओं, लेखकों और पत्रकारों को शहरी नक्सली बताकर निशाना बनाने पर रोक लगाने और ऑपरेशन खारगर को खत्म करने की मांग की।
