
भारत में कर प्रणाली: मध्यम वर्ग और पॉपकॉर्न की परेशानी
कर किसी भी अर्थव्यवस्था की नींव होता है, जो सार्वजनिक सेवाओं और बुनियादी ढांचे के लिए राजस्व प्रदान करता है। लेकिन भारत में, कर प्रणाली अक्सर मध्यम और निम्न आय वर्ग के लिए एक बोझ की तरह लगती है। हाल ही में पॉपकॉर्न पर जीएसटी को लेकर हुई बहस ने यह सवाल उठाया है कि क्या भारत की कर प्रणाली वास्तव में न्यायपूर्ण है।
कर किसी भी अर्थव्यवस्था की नींव होता है, जो सार्वजनिक सेवाओं और बुनियादी ढांचे के लिए राजस्व प्रदान करता है। लेकिन भारत में, कर प्रणाली अक्सर मध्यम और निम्न आय वर्ग के लिए एक बोझ की तरह लगती है। हाल ही में पॉपकॉर्न पर जीएसटी को लेकर हुई बहस ने यह सवाल उठाया है कि क्या भारत की कर प्रणाली वास्तव में न्यायपूर्ण है।
भारत की कर प्रणाली बनाम विकसित देशों की कर नीतियां
भारत में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों का मिश्रण है। आयकर की दरें 5% से 30% तक हैं, जो प्रगतिशील संरचना का पालन करती हैं। कॉर्पोरेट कर की दर 22% है, जो वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी है। लेकिन 0% से 28% तक की जीएसटी जैसी अप्रत्यक्ष कर दरें सभी पर समान रूप से लागू होती हैं, जिससे यह मध्यम और निम्न वर्ग पर अधिक भारी पड़ती है।
इसके विपरीत, अमेरिका, यूके और नॉर्डिक देशों जैसे विकसित देशों में प्रगतिशील कर प्रणाली के साथ मजबूत सार्वजनिक कल्याण योजनाएं भी हैं। अमेरिका में आयकर दर 37% तक जाती है, लेकिन शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल के लिए कर क्रेडिट यह बोझ कम करते हैं। नॉर्डिक देशों में, कर दरें 50% से अधिक हैं, लेकिन नागरिकों को मुफ्त स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और व्यापक सामाजिक सुरक्षा मिलती है। भारत में, करदाताओं को ऐसा कोई लाभ नहीं मिलता, जिससे असंतोष बढ़ता है।
पॉपकॉर्न पर विवाद: सच्चाई का दाना
हाल ही में, जीएसटी काउंसिल ने पॉपकॉर्न पर अलग-अलग दरें तय कीं—नॉन-ब्रांडेड नमकीन पॉपकॉर्न पर 5%, पैकेज्ड और ब्रांडेड पर 12%, और कारमेल पॉपकॉर्न पर 18%। इस कदम की तीखी आलोचना हुई, और इसे अनावश्यक हस्तक्षेप बताया गया। पॉपकॉर्न को स्वाद और प्रकार के आधार पर कर लगाना उस देश में हास्यास्पद लगता है जहां शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी क्षेत्रों में अभी भी उचित वित्तीय प्रबंधन की कमी है।
यह विवाद भारत की कर प्रणाली की एक गहरी समस्या को उजागर करता है: जीएसटी जैसे अप्रत्यक्ष करों पर अत्यधिक निर्भरता, जो अमीरों की तुलना में मध्यम और निम्न वर्ग पर अधिक भारी पड़ते हैं। एक अरबपति, जो अपनी महंगी कॉफी का आनंद ले रहा है, उसे कर में छूट मिलती है, जबकि आम आदमी को सिनेमाघर जाने से पहले पॉपकॉर्न के प्रकार की पहचान करनी पड़ती है।
मध्यम वर्ग पर बोझ क्यों?
भारत में करदाता आधार दुनिया में सबसे छोटा है, जिसमें केवल 5% आबादी आयकर का भुगतान करती है। कृषि आय में छूट और बड़ी अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के कारण सरकार राजस्व के लिए वेतनभोगी मध्यम वर्ग पर अत्यधिक निर्भर है। इसके साथ ही, अप्रत्यक्ष करों की वजह से रोजमर्रा की जिंदगी गरीबों के लिए और महंगी हो जाती है।
इसके विपरीत, विकसित देशों में कर का बोझ समान रूप से वितरित होता है। उदाहरण के लिए, यूके में चाइल्ड टैक्स क्रेडिट और वरिष्ठ नागरिकों के लिए कर राहत मिलती है, जबकि जर्मनी में उच्च कर मुफ्त शिक्षा और सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल को वित्तपोषित करते हैं, जिससे करदाताओं को मूल्य की अनुभूति होती है।
व्यंग्यात्मक दृष्टिकोण: पॉपकॉर्नोमिक्स
पॉपकॉर्न का यह विवाद उस प्रणाली का प्रतीक है जो "आसान लक्ष्य" पर ध्यान केंद्रित करती है। अगर पॉपकॉर्न पर तीन अलग-अलग जीएसटी दरें हो सकती हैं, तो क्या हमें अब समोसे को उसके तीखेपन के आधार पर कर लगाने के लिए तैयार होना चाहिए? यह अजीब लगता है कि नीति निर्माता बड़े आर्थिक असंतुलन को नजरअंदाज कर फिल्मी स्नैक्स पर फोकस कर रहे हैं।
आगे का रास्ता
भारत की कर दरें भले ही बहुत अधिक न हों, लेकिन अप्रत्यक्ष करों पर निर्भरता और सार्वजनिक सेवाओं के सीमित लाभ इसे अन्यायपूर्ण बनाते हैं। करदाताओं का आधार बढ़ाना, नीतियों को सरल बनाना, और सार्वभौमिक कल्याण सेवाओं में निवेश करना इस असंतुलन को सुधार सकता है।
आखिरकार, कर प्रणाली को राष्ट्र के विकास में योगदान की भावना देनी चाहिए, न कि मध्यम वर्ग को दंडित करने की। वरना, पॉपकॉर्न पर सरकारी नीतियां शायद जनता के लिए कड़वे स्वाद के अलावा कुछ नहीं छोड़ेंगी।
