
संपादक की कलम से
हमारा देश एक बड़ा लोकतांत्रिक देश है हमारा संविधान हर नागरिक को अपने अधिकारों के लिए बोलने और आवाज उठाने की आजादी देता है लेकिन पिछले कुछ सालों से खासकर हमारे अपने राज्य में देखा जा रहा है कि हमने इस आजादी के मायने अपने हिसाब से बदल दिये हैं
हमारा देश एक बड़ा लोकतांत्रिक देश है हमारा संविधान हर नागरिक को अपने अधिकारों के लिए बोलने और आवाज उठाने की आजादी देता है लेकिन पिछले कुछ सालों से खासकर हमारे अपने राज्य में देखा जा रहा है कि हमने इस आजादी के मायने अपने हिसाब से बदल दिये हैं. सड़क जाम, रेलवे ट्रैक पर धरना, सरकारी दफ्तरों में कर्मचारियों की हड़ताल आम बात हो गयी है. आज हमें अपना काम तय करने से पहले डर लगने लगता है कि बसें चलेंगी या नहीं किसी कार्यालय में जाते समय यह निश्चित नहीं होता कि संबंधित अधिकारी या कर्मचारी मिलेगा या नहीं
यह कैसी व्यवस्था है कि हम अपनी सारी जायज-नाजायज मांगों को पूरा करने के लिए एक ही रास्ता चुनते हैं- सड़कें बंद, शहर बंद। इसके साथ ही क्या हमने कभी सोचा कि आम जनता, जिसका आपके मुद्दों से कोई लेना-देना नहीं है, उसे ही परेशानी होती है। बसों, ट्रेनों और सड़कों का उपयोग 95% आम जनता द्वारा किया जाता है आपके बंद करने से मंत्रियों और नेताओं को कोई नुकसान नहीं है बंद के आह्वान से रोजी रोटी कमाने वालों के चूल्हे में आग नहीं जलती सड़कों पर चलने वाले लोग कोई खुशी से अपने घरों से नहीं निकलते, बल्कि हर किसी को किसी जरूरी काम के लिए एक जगह पहुंचना होता है. आज के व्यस्त समय में जब किसी व्यक्ति को किसी विरोध प्रदर्शन के कारण सड़क पर रुकना भी पड़े तो आम लोगों का इसे कितना समर्थन मिल सकता है, इसका अंदाजा हम लगा सकते हैं।
आज के दौर में अपनी आवाज संबंधित सरकारों तक पहुंचाने के और भी कई तरीके हैं यह तय करना जरूरी है कि हमारी मांगें क्या हैं और उन्हें कौन पूरा करेगा आम लोगों की खजल खुआरी किसी भी तरह से जायज नहीं हैं
