पंजाब दिवस के महत्व के लिए पंजाबी भाषा के प्रति जागरूकता बढ़ाने की जरूरत-डॉ. आशट

पटियाला, 1 नवंबर: पंजाबियों के वर्षों के संघर्ष और बलिदान के बाद ही पंजाब दिवस की स्थापना की गई। इतिहास गवाह है कि समय-समय पर जो भी आक्रमणकारी या हमलावर भारत आए, उन्होंने सबसे पहले पंजाब की ड्योडी से होकर भारत में प्रवेश किया, जिसके कारण इसे भारत की तलवार वाली भुजा का दर्जा प्राप्त है।

पटियाला, 1 नवंबर: पंजाबियों के वर्षों के संघर्ष और बलिदान के बाद ही पंजाब दिवस की स्थापना की गई। इतिहास गवाह है कि समय-समय पर जो भी आक्रमणकारी या हमलावर भारत आए, उन्होंने सबसे पहले पंजाब की ड्योडी से होकर भारत में प्रवेश किया, जिसके कारण इसे भारत की तलवार वाली भुजा का दर्जा प्राप्त है। वर्तमान में विश्व में 6700 भाषाएँ बोली जाती हैं, जिनमें पंजाबी का 13वाँ स्थान है, परन्तु दुःख के साथ कहना पड़ता है कि समय-समय पर राजनीतिक चालों ने न केवल पंजाबी भाषा और लिपि को विभाजित किया है, बल्कि पंजाब की भौगोलिक सीमाओं को भी काट दिया है। जिसके कारण वर्तमान में 'महान पंजाब' एक छोटा सा 'सूबी' बन गया है। ये शब्द यहां शिरोमणि पंजाबी बाल साहित्य लेखक, राज्य पुरस्कार विजेता और साहित्य अकादमी बाल साहित्य पुरस्कार विजेता डॉ. दर्शन सिंह अष्ट जो पंजाबी साहित्य सभा (रजि.) पटियाला के अध्यक्ष भी हैं, ने व्यक्त किये। डॉ. दर्शन सिंह अष्ट ने पंजाब दिवस की 57वीं वर्षगांठ पर सभी पंजाबियों से बात करते हुए, पंजाबी भाषा के संदर्भ में अधिक जानकारी साझा की और कहा कि 1947 के बाद भारतीय पंजाब में केवल 38% पंजाबी भाषी क्षेत्र बचे थे। पाकिस्तान में 1 नवंबर को जब पंजाब प्रांत की स्थापना की घोषणा की गई तो इसके विशाल भाग को काटकर उससे हिमाचल प्रदेश और फिर हरियाणा प्रांत बनाया गया। इतना ही नहीं, चंडीगढ़ का निर्माण पंजाब के पुआध क्षेत्र के 28 गांवों को उजाड़कर किया गया था। लेकिन आज पंजाब का केवल 14% क्षेत्र ही बचा है और वह अपने अधिकारों से वंचित महसूस करता है। यह दौर अभी खत्म नहीं हुआ है।
डॉ0 अष्ट ने कहा कि पंजाब दिवस का महत्व तभी कायम रह सकता है जब पंजाब की धरती पर स्थापित सभी सीबीएसई, आईसीएससी बोर्ड और कॉन्वेंट स्कूलों में पंजाबी मातृभाषा को प्राथमिक शिक्षा के रूप में लागू किया जाए, इसे रोजगारोन्मुखी बनाया जाए। उन्होंने यह भी मांग की कि बच्चों के लिए उनकी अपनी मातृभाषा में बहुआयामी प्रतियोगिताएं आयोजित करके उन्हें अन्य लेखकों की तरह उचित सम्मान और पुरस्कार दिया जाए और कार्यालयों में पंजाबी भाषा का उपयोग सुनिश्चित किया जाए ताकि इसका बहुमुखी विकास हो सके।