खिलती कलियों का माली: श्री मुकेश कुमार जी

माहिलपुर- जीवन के संघर्ष में हिम्मती इंसान हमेशा ऊँची और सच्ची मंजिलें प्राप्त करते हैं। जो बिना मेहनत के किस्मत को कोसते हैं, वे वहीं के वहीं रह जाते हैं। अपने जीवन में मेहनत और परिश्रम करने वाले आदरणीय साहित्यकार श्री मुकेश कुमार जी आजकल ऑस्ट्रेलिया में निवास करते हैं।

माहिलपुर- जीवन के संघर्ष में हिम्मती इंसान हमेशा ऊँची और सच्ची मंजिलें प्राप्त करते हैं। जो बिना मेहनत के किस्मत को कोसते हैं, वे वहीं के वहीं रह जाते हैं। अपने जीवन में मेहनत और परिश्रम करने वाले आदरणीय साहित्यकार श्री मुकेश कुमार जी आजकल ऑस्ट्रेलिया में निवास करते हैं। 
उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत शहीद भगत सिंह नगर जिले के गाँव माहिल गहिलां से शुरू की, फिर हिम्मत के साथ कठिन और आसान रास्तों का पथिक बन गए। साधारण जीवन जीते हुए ऊँची सोच के साथी बने, तो एम.कॉम और बी.एड तक की डिग्रियाँ प्राप्त करके शिक्षा को समर्पित हो गए। उनके मन में एक ही बात हमेशा चलती रहती थी कि यह आसपास रोशन हो और आसपास को सुंदर और सच्चा बनाने के लिए शिक्षा का होना बहुत जरूरी है। 
इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उन्होंने शिक्षा का एक पौधा लगाया—संत बाबा सेवा सिंह खालसा पब्लिक स्कूल नौरा। यह स्कूल उनकी मेहनत, ईमानदारी, हिम्मत और लगन का सबूत देता हुआ आज भी बड़ी शान के साथ इलाके की सेवा कर रहा है। मिशनरी भावना के साथ इस स्कूल का संचालन श्री मुकेश कुमार जी और उनके परिवार द्वारा किया जा रहा है। जिसके माध्यम से खिलती कलियों को सजाया और संवारा जाता है।
जब हमने 1995 में निक्कीआं करुंब्लां पत्रिका शुरू की, तो वह इसके पाठक बने। पाठक बनकर उन्होंने इससे प्रेरणा ली और कविता की सृजन शुरू की। उनकी पहली कविता भी इसी पत्रिका में छपी। इससे प्रेरित होकर उन्होंने और रचनाएँ रचनी शुरू कर दीं, जो इस पत्रिका की शोभा बनती रहीं। 
मेरे द्वारा उनकी रचनाओं को शाबाशी दी जाती रही, तो वह प्रेरित होकर और आगे से आगे बढ़ते गए। बच्चों के साथ बच्चा बनकर उनकी मानसिकता को पढ़ने लगे और जब उन्हें बच्चों की मानसिकता का ज्ञान हुआ, तो वह उनके स्तर की कविताएँ रचने लगे। 
जब बच्चों ने इन कविताओं को पढ़ा, तो वे उनके दीवाने बनने लगे। कारण था उनकी रचना में बाल मन की बातें। जब बच्चों को अपने जैसे की बातें मिलती हैं, तो वे इतना घुलमिल जाते हैं कि वे खुद को भी भूल जाते हैं। इस तरह श्री मुकेश जी की रचनाओं में इतना रस और आनंद है कि बच्चे अपना आप ही भूलकर रचनाओं के साथ एकमेक हो जाते हैं।
जीवन के हर पन्ने पर सुनहरे अक्षर उकेरने वाली रचनाओं की यह पुस्तक पढ़कर हम हैं होना पास बहुत लंबे समय बाद प्रकाशित की जा रही है। इसीलिए मैं उन्हें हमेशा उत्साहित करता रहा हूँ। लेकिन वह अपने काम में इतना व्यस्त रहते हैं कि उन्हें ऐसी बातों का ख्याल ही नहीं आता। आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि विदेशों में रहने वाले लोग कितने व्यस्त होते हैं। 
जब वह भारत आते, तो मैं एक ही बात कहता कि अपनी किताब छपवा लें क्योंकि यह रिकॉर्ड किसी और ढंग से संभाला नहीं जा सकता। करुंबलां न्यूज़  और निक्कीआं करुंब्लां बाल पत्रिका में प्रकाशित हुई कविताओं ने उनके अंदर फिर से इस ज्योति को जगा दिया और वह फिर से रचना करने में सक्रिय हो गए। इसी सक्रियता के परिणामस्वरूप यह पुस्तक आपके पास पहुँची है।
बाल जीवन के हर पन्ने को टटोलने वाली यह पुस्तक पढ़कर हम हैं होना पास बच्चों के अंदर नए सपने बोती है। ये सपने हैं उनके अंदर जीवन की तहों को टटोलने के और जीवन को सही रंग-ढंग से जीने के। बाल जीवन को सजाने और संवारने में पुस्तकों और बाल पत्रिकाओं का कितना महत्व है? इस कवि ने इस सबके बारे में बहुत शानदार कविताएँ रची हैं। ये कविताएँ हक, सच्चाई और पहरा देने के लिए तैयार करती हैं और जीवन में सफलता प्राप्त करने का एकमात्र जरिया बनती हैं। 
बच्चों के लिए प्रेरणादायक और उनके जीवन में रोशनी भरने वाली ये कविताएँ जीवन के रास्तों में चिराग जलाती हैं। मुझे यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं कि इन कविताओं को पढ़ने वाले पाठक और बच्चे जीवन के संघर्ष में कामयाब इंसान बनेंगे। उनकी सृजन का असल मकसद भी यही है कि आज के समय में जो कद्रें-कीमतें खुर रही हैं, उन्हें बचाया जाए ताकि आने वाली पीढ़ी आदर्श नागरिक बन सके।
11 मई, 1965 को गाँव माहिल गहिलां में पिता गुरदियाल चंद और माता लज्जावती की कोख से श्री मुकेश कुमार जी ने जन्म लिया। उनकी छोटी बहन परवीन कुमारी उनके लिए प्रेरणा और प्यार की देवी है। उनके माता-पिता ने उनकी शख्सियत को गढ़ने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। ईमानदारी की कमाई के साथ उन्होंने श्री मुकेश जी को पढ़ाया-लिखाया और ऊँची मंजिल का पथिक बनाया। माता-पिता द्वारा दिए गए गुर उनके जीवन को ऊँचा करने में उनके साथी बने। 
इसीलिए आज भी वह परोपकारी कार्यों को प्राथमिकता देते हैं। माहिल गहिलां के सरकारी स्कूल से दसवीं पास करने के बाद, उन्होंने गुरु नानक कॉलेज, सुखचैनाना, फगवाड़ा से बी.कॉम की डिग्री प्रथम श्रेणी में प्राप्त की। इसी तरह, उन्होंने शिमला यूनिवर्सिटी से एम.कॉम और 1991 में फरीदकोट कॉलेज से बी.एड प्रथम श्रेणी में पूरी की। नौकरी करने की बजाय वह नौकरियाँ देने वाले बन गए। 1
992 में संत बाबा सेवा सिंह खालसा पब्लिक स्कूल नौरा, जिला नवांशहर की स्थापना करके उन्होंने लगभग 20 कर्मचारियों को रोजगार दे दिया। उनके प्रयासों ने न केवल रोजगार पैदा किया, बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में एक नया अध्याय भी जोड़ दिया। स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे हर क्षेत्र में शानदार उपलब्धियाँ हासिल करके माता-पिता, स्कूल और इलाके का नाम रोशन कर रहे हैं। 
एक कुशल मनोवैज्ञानिक की तरह वह न केवल बच्चों की मानसिकता को पढ़ते हैं, बल्कि ऐसे कर्मचारियों को भी भर्ती करते हैं जो इस क्षेत्र को तन-मन से समर्पित हों। इन कार्यों में उनके विचारों की हमसफ़र जीवन साथी प्रेम लता महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। उनकी बेटी नवदीप कौर अमन और बेटा अश्मन कुमार भी माता-पिता द्वारा बनाई गई राहों पर चल रहे हैं। 
1997 से 2002 तक उन्होंने गाँव सूरापुर और बहिराम में सरकारी शिक्षक की जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया। बाद में, ऑस्ट्रेलिया की धरती पर उन्होंने पंजाब और पंजाबियत का झंडा गाड़ा। पंजाबी भाषा के प्रचार और प्रसार के लिए उन्होंने वहाँ की संस्थाओं से संपर्क करके पंजाबी भाषा की पढ़ाई शुरू की। एक समर्पित शिक्षक होने के नाते वह विद्या और विद्यार्थियों के दीवाने हैं।