
संगठनों ने पंजाब दुकानें एवं वाणिज्यिक प्रतिष्ठान अधिनियम 1958 में किए गए संशोधनों को निरस्त करने के लिए विधायकों को मांग पत्र सौंपे
नवांशहर 13 जून-आज यहां इंडियन फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियन (आईएफटीयू), डेमोक्रेटिक वर्कर्स फेडरेशन और ग्रामीण मजदूर यूनियन पंजाब ने पंजाब के मुख्यमंत्री के नाम नवांशहर के विधायक डॉ. नछत्रपाल और बंगा के विधायक डॉ. सुखविंदर कुमार सुखी को पंजाब दुकानें एवं वाणिज्यिक प्रतिष्ठान अधिनियम 1958 में किए गए सभी मजदूर विरोधी बदलावों को निरस्त करने के लिए मांग पत्र सौंपे।
नवांशहर 13 जून-आज यहां इंडियन फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियन (आईएफटीयू), डेमोक्रेटिक वर्कर्स फेडरेशन और ग्रामीण मजदूर यूनियन पंजाब ने पंजाब के मुख्यमंत्री के नाम नवांशहर के विधायक डॉ. नछत्रपाल और बंगा के विधायक डॉ. सुखविंदर कुमार सुखी को पंजाब दुकानें एवं वाणिज्यिक प्रतिष्ठान अधिनियम 1958 में किए गए सभी मजदूर विरोधी बदलावों को निरस्त करने के लिए मांग पत्र सौंपे।
इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए आईएफटीयू के राज्य प्रेस सचिव जसबीर दीप, आईएफटीयू जिला सचिव परवीन कुमार निराला, ग्रामीण मजदूर यूनियन के जिला नेता कमलजीत सनावा, हरी राम रसूलपुरी और डेमोक्रेटिक आशा वर्कर्स एंड फैसिलिटेटर्स यूनियन की जिला अध्यक्ष शकुंतला सरोए ने कहा कि पंजाब सरकार द्वारा दुकानें एवं वाणिज्यिक प्रतिष्ठान अधिनियम 1958 में किए गए संशोधन मजदूर विरोधी संशोधन हैं। इससे इन व्यापारिक प्रतिष्ठानों में काम करने वाले श्रमिक कानून के अनुसार अपने अधिकारों से वंचित हो जाएंगे।
दैनिक काम के घंटों और ओवरटाइम में वृद्धि किसी भी तरह से उचित नहीं है। दैनिक मजदूरी को 12 घंटे से बढ़ाकर 144 घंटे और ओवरटाइम को 50 घंटे से बढ़ाना अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के फैसले का उल्लंघन है, जिसके अनुसार अधिकतम दैनिक मजदूरी 8 घंटे होगी। यह श्रमिकों के स्वास्थ्य, आराम और मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए रखा गया था। नियोक्ता पहले से ही इन प्रतिष्ठानों में श्रम कानूनों को लागू नहीं कर रहे हैं।
अब इन परिवर्तनों से श्रमिकों का शोषण और बढ़ जाएगा। नियोक्ताओं को श्रमिकों का शोषण करने की खुली छूट मिल जाएगी। उन्होंने कहा कि भगवंत मान सरकार ने यह बेहद मजदूर विरोधी फैसला लिया है और 20 से कम श्रमिकों वाली दुकानों और अन्य व्यापारिक प्रतिष्ठानों को श्रम कानूनों के दायरे से बाहर कर दिया है। इससे इन व्यापारिक प्रतिष्ठानों में काम करने वाले श्रमिकों को किसी भी तरह के कानूनी श्रम अधिकार नहीं मिलेंगे।
इन श्रमिकों को अब काम के घंटे, वेतन, उपस्थिति, सुरक्षा आदि से संबंधित किसी भी तरह के अधिकार से कानूनी तौर पर वंचित कर दिया गया है। यही नहीं, इस कानून के दायरे में आने वाले व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को भी ओवरटाइम के घंटों के संबंध में बड़ी आजादी दी गई है।
काम के घंटों को लेकर कानून में किए जा रहे बदलावों से यह साफ है कि इनके जरिए नियोक्ताओं को फायदा पहुंचाया जा रहा है। आज बेतहाशा महंगाई के दौर में उद्योगों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में श्रमिकों से बेहद कम वेतन/दिहाड़ी पर कड़ी मेहनत करवाई जाती है। ज्यादातर जगहों पर नियोक्ता श्रमिकों से पहले रोजाना तीन से चार घंटे ओवरटाइम करवाते हैं।
इस तरह नियोक्ता बड़े पैमाने पर ओवरटाइम काम के घंटों से संबंधित श्रम कानून का खुला उल्लंघन कर रहे हैं। श्रमिक संगठनों की ओर से बार-बार यह मांग उठाई जाती रही है कि आठ घंटे के कार्यदिवस का वेतन इतना होना चाहिए कि किसी भी श्रमिक को ओवरटाइम न करना पड़े। लेकिन सरकार ने उचित न्यूनतम वेतन तय नहीं किया है, बल्कि नियोक्ताओं के पक्ष में ओवरटाइम काम के घंटों से संबंधित कानून में बदलाव कर दिया है।
उन्होंने कहा कि उनके संगठनों का मानना है कि ये बदलाव मोदी सरकार द्वारा बनाए गए चार मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं के छिपे हुए क्रियान्वयन की शुरुआत है। इस अवसर पर किरण धर्मकोट, सुरिंदर मीरपुरी, सतनाम लाडी कोट रांझा, ऑटो वर्कर्स यूनियन के जिला सचिव तरनजीत, स्ट्रीट वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष हरे राम, सर्वेश गुप्ता, सुरिंदर सिंह सनावा भी मौजूद थे।
