
भगवान श्री कृष्ण के रंग में रंगा गया गांव पिपलीवाल
गढ़शंकर, 28 मई- गांव पिपलीवाल के राधा कृष्ण मंडल एवं मां ज्वाला जी जागरण कमेटी तथा क्षेत्र की संगत व भगवान श्री कृष्ण जी के भक्तों द्वारा प्रथम श्रीमद्भागवत कथा का सफल आयोजन किया गया । कथा व्यास गद्दी व्यास आचार्य जगमोहन दत्त शास्त्री जी ने इस अवसर पर भक्ति का ऐसा आनंद पहुंचाया कि कथा के सातो दिन पूरे क्षेत्र में भगवान श्री कृष्ण जी के रंग में रंगे श्रद्धालु, दृश्य ऐसा हो गया कि पंडाल छोटा पड़ गया तथा पंडाल बृंदावन मय हो गया।
गढ़शंकर, 28 मई- गांव पिपलीवाल के राधा कृष्ण मंडल एवं मां ज्वाला जी जागरण कमेटी तथा क्षेत्र की संगत व भगवान श्री कृष्ण जी के भक्तों द्वारा प्रथम श्रीमद्भागवत कथा का सफल आयोजन किया गया । कथा व्यास गद्दी व्यास आचार्य जगमोहन दत्त शास्त्री जी ने इस अवसर पर भक्ति का ऐसा आनंद पहुंचाया कि कथा के सातो दिन पूरे क्षेत्र में भगवान श्री कृष्ण जी के रंग में रंगे श्रद्धालु, दृश्य ऐसा हो गया कि पंडाल छोटा पड़ गया तथा पंडाल बृंदावन मय हो गया।
भगवान श्री कृष्ण जी की महिमा में डूबे श्रद्धालु इतने आनंदित नजर आए कि हर तरफ जय श्री कृष्ण, जय श्री कृष्ण के जयकारे लग रहे थे। कथा शुरू होने से पहले भव्य शोभायात्रा का भी आयोजन किया गया।
यह भव्य शोभायात्रा गांव पिपलीवाल से बीनेवाल, बीनेवाल से अड्डा झुंगियां से कोकोवाल मजारी होते हुए पुन: गांव पिपलीवाल पहुंची। इस प्रकार जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया, वहीं क्षेत्र में जगह-जगह श्रद्धालुओं के स्वागत के लिए विशेष प्रबंध किए गए थे।
श्रीमद्भागवत महापुराण कथा के पहले दिन आचार्य जगमोहन दत्त शास्त्री जी ने बताया कि कथा में कितनी शक्ति है।
उदाहरण के तौर पर कथा सुनाई गई कि एक शराबी बहुत ज्यादा नशे में था और उसने अपने माता-पिता का भी अपमान किया था। उसमें पूरे संसार की बुराइयां शामिल थीं। ऐसी सामाजिक बुराइयों से भरे लोगों को सुधारने के लिए श्रीमद्भागवत कथा की रचना की गई। एक ऐसी कथा जिससे न केवल जीवन जी रहे लोग भव सागर से पार हो जाते हैं, बल्कि प्रेत आत्मा का भी कल्याण हो जाता है।
कथा के दूसरे दिन बताया गया कि श्रीमद्भागवत कथा के प्रचार-प्रसार के लिए भगवान श्री कृष्ण जी ने अपने परम प्रिय शुकदेव जी को पृथ्वी पर भेजा, जिन्होंने अपने मुख से श्रीमद्भागवत कथा का प्रचार-प्रसार किया। दूसरे प्रसंग में राजा परीक्षित की कथा सुनाई गई, जिसमें उन्हें मिले श्राप के अनुसार संतों का अपमान करने पर राजा ने दंड था और सातवें दिन उनकी मृत्यु होनी थी। शास्त्री जी ने बताया कि कभी भी किसी संत, ब्राह्मण, गुरु या गाय का अपमान नहीं करना चाहिए, अन्यथा आप कितने भी शक्तिशाली क्यों न हों, कुछ ही दिनों में नष्ट हो जाएंगे।
तीसरे दिन बालक ध्रुव की कथा सुनाई गई। कथा में बताया गया कि ध्रुव ने मात्र साढ़े पांच वर्ष की आयु में ही भगवान को प्राप्त कर लिया था। इससे हमें प्रेरणा मिलती है कि अगर हम बचपन से ही भगवान की भक्ति पर ध्यान दें तो भगवान को पाया जा सकता है। कथा में यह भी बताया गया है कि कुछ राजा अपना राजपाट छोड़कर जंगलों में चले जाते हैं और वहां जाने के बाद भी इच्छा न छोड़ने के कारण जब वे हिरण की ओर आकर्षित होते हैं तो उनका अगला जन्म हिरण के रूप में होता है।
हिरण के रूप में जन्म लेने वाले राजा को अपना पूरा पिछला जन्म याद रहता है। इस कथा का जिक्र करते हुए शास्त्री ने बताया कि यदि आप अपना घर बार छोड़कर जंगल में जाकर तपस्या करते हैं लेकिन वहां जाकर भी आप किसी वस्तु विशेष की ओर आकर्षित होते हैं तो आपका मन सामाजिक चीजों में उलझ सकता है इसलिए जंगल में जाने की जरूरत नहीं है सिर्फ सांसारिक रहना जरूरी है। आपको सत्संग में भी शामिल होना चाहिए और नितनेम के अनुसार प्रभु का नाम सिमरन करना चाहिए।
इसके साथ ही एक अन्य कथा सुनाई गई जिसमें पुत्र का नाम नारायण रखने से भगवान नारायण की प्राप्ति होती है क्योंकि पुत्र को बार बार की गई आवाजें भगवान नारायण तक पहुंच रही थी और नारायण प्रसन्न होकर उस पर पूरी कृपा बरसा रहे थे। इसके साथ ही भक्त प्रहलाद की कथा भी सुनाई गई। राक्षस कुल में जन्म लेकर भक्त प्रहलाद ने अपनी भक्ति से भगवान को प्राप्त किया, जिससे यह सिद्ध होता है कि भगवान जाति-धर्म देखकर दया नहीं करते, वे तो केवल भक्ति देखते हैं। जो लोग भजन करते हैं, भगवान उनके हो जाते हैं।
कथा के चौथे दिन राजा बलि की कथा सुनाई गई। बताया गया कि राजा बलि ने गायों और ब्राह्मणों की सेवा करके खुद को शक्तिशाली राजा के रूप में विकसित किया। उनके पास एक अटूट कवच था, वह कवच शक्ति और साधना का था। इसके साथ ही एक और प्रसंग सुनाया कि यदि आप दान करते हैं, अच्छे कर्म करते हैं, मंदिर बनवाते हैं, कथा करते हैं, कीर्तन करते हैं या ऐसे कार्यों में सहयोग करते हैं तो आपको भी अखंड राज्य की प्राप्ति होगी। एक अन्य प्रसंग के अनुसार गोकुल में प्रतिदिन भोजन और भंडारे की व्यवस्था करने वाली माता यशोदा और नंद बाबा से प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण ने उनके घर जन्म लिया। "मेरी गली विच आ शमा " पिंका भूंबला पिपलीवाल द्वारा लिखे गए इस भजन पर पूरा पंडाल भक्ति रस में डूब गया।
पांचवें दिन की कथा में शास्त्री जी ने भगवान कृष्ण जी की बाल लीलाओं पर विस्तार से प्रकाश डाला। इसमें माखन चोरी की लीला और गोवर्धन पर्वत उठाने की लीला शामिल थी।
कथा के छठे दिन का बहुत ही सुंदर प्रसंग समझाते हुए आचार्य जगमोहन दत्त शास्त्री जी ने कहा कि भगवान हमेशा आपको यह एहसास कराते हैं कि वह आपके साथ हैं और भगवान का आपके साथ होना सबसे बड़ा आशीर्वाद है। छठे दिन भक्तों द्वारा "मेरी बन गई शाम मजबूरी, तेरे करने दीदार जरूरी" का गायन किया गया। कथा के दौरान तीन अलग-अलग प्रकार के मंच सजाए गए थे, जो काफी आकर्षण का केंद्र रहे। कथा के सातवें दिन वह प्रसंग समझाया गया जिसमें राजा प्रकाशिता ने समझा कि भगवान के बिना यहां कुछ भी नहीं है, भगवान अंदर हैं और भगवान बाहर हैं। इसलिए भगवान का भजन सर्वोत्तम है। कथा के दौरान सुदामा की व्याख्या करते हुए आचार्य जी ने कहा कि जिसके जीवन में अच्छे कर्म हैं, वह सुदामा है।
सातवें दिन अलग-अलग प्रसंगों में युवाओं को नशे से दूर रहने के बहुत ही कारगर उपाय बताए गए और भगवान का ध्यान करने के लिए भी प्रेरित किया गया। कथा समापन से पूर्व श्रद्धालुओं को संकल्प करवाया गया कि वे प्रतिदिन प्रभु के चरणों में शीश झुकाएंगे तथा नशे से दूर रहेंगे, पौधे लगाएंगे तथा अपने धर्म का पालन करेंगे। बिंदु भूंबला ने श्रीमद् भागवत महापुराण कथा के आयोजन को सफल बनाने के लिए सभी सहयोगियों का आभार व्यक्त किया, कथा में पहुंचे विभिन्न पदों की महानुभावों का विशेष सम्मान भी किया गया।
