ग़दर पार्टी स्थापना दिवस समारोह

जालंधर- स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के अमूल्य क्रांतिकारी पृष्ठ ग़दर पार्टी के 111वें (1913-2025) स्थापना दिवस के अवसर पर देश भगत यादगार कमेटी द्वारा ‘नई मंडी एवं कृषि नीति’ विषय पर आयोजित परिचर्चा में इस नीति के क्रियान्वयन के व्यापक दुष्परिणामों तथा इसके विरुद्ध जन संघर्ष की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया। इस परिचर्चा के अवसर पर देश भगत यादगार कमेटी के अध्यक्ष अजमेर सिंह, महासचिव पृथीपाल सिंह मरीमेघा, वित्त सचिव सीतल सिंह संघा, सांस्कृतिक विंग के संयोजक अमोलक सिंह तथा कमेटी द्वारा आमंत्रित वक्ता लखवीर सिंह निजामपुर, डॉ. सतनाम सिंह अजनाला, जोगिंदर सिंह उग्राहां तथा रमिंदर सिंह पटियाला उपस्थित थे।

जालंधर- स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के अमूल्य क्रांतिकारी पृष्ठ ग़दर पार्टी के 111वें (1913-2025) स्थापना दिवस के अवसर पर देश भगत यादगार कमेटी द्वारा ‘नई मंडी एवं कृषि नीति’ विषय पर आयोजित परिचर्चा में इस नीति के क्रियान्वयन के व्यापक दुष्परिणामों तथा इसके विरुद्ध जन संघर्ष की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
इस परिचर्चा के अवसर पर देश भगत यादगार कमेटी के अध्यक्ष अजमेर सिंह, महासचिव पृथीपाल सिंह मरीमेघा, वित्त सचिव सीतल सिंह संघा, सांस्कृतिक विंग के संयोजक अमोलक सिंह तथा कमेटी द्वारा आमंत्रित वक्ता लखवीर सिंह निजामपुर, डॉ. सतनाम सिंह अजनाला, जोगिंदर सिंह उग्राहां तथा रमिंदर सिंह पटियाला उपस्थित थे।
चर्चा की शुरुआत कमेटी के महासचिव पृथीपाल सिंह मरीमेघा के स्वागत भाषण से हुई। इस अवसर पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि ग़दर पार्टी के स्थापना दिवस के अवसर पर 1913 में जिन सवालों का सामना करना पड़ा था, वे सभी सवाल अब और भी व्यापक और तीखे रूप में सामने आ रहे हैं। ये सवाल हमसे जवाब मांगते हैं। 
यह चर्चा उन सवालों में से एक, कृषि और बाज़ार पर हमले को संबोधित करने के साथ-साथ साम्राज्यवादी और देशी कॉरपोरेट हमलों के विशाल समूह के खिलाफ़ हमले को केंद्र में लाने में भी सफल रही। लखवीर सिंह निज़ामपुर, डॉ. सतनाम सिंह अजनाला, जोगिंदर सिंह उगराहां और रमिंदर सिंह पटियाला ने चर्चा में अपने विचार साझा किए। 
वक्ताओं ने दिखाया कि नई बाज़ार और कृषि नीति के इरादे, जिन्हें दिल्ली किसान मोर्चा ने जीवन-घाती संघर्ष के बाद निरस्त करने में सफलता पाई है, कहीं ज़्यादा ख़तरनाक हैं। वक्ताओं ने तथ्यों के साथ समझाया कि कैसे साम्राज्यवादी अर्थव्यवस्था, जो संकट में आ गई है, अपने संकट को हमारे जैसे देशों के लोगों पर थोपने के लिए लगातार नए बहाने गढ़ रही है। 
वक्ताओं का स्पष्ट और साझा मत था कि कृषि और बाजार हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। इससे न केवल किसान बल्कि अन्य मेहनतकश वर्ग भी प्रभावित होंगे। उन्होंने कहा कि एक दिन में करोड़ों रुपए मांगने वाली कंपनियां अपनी नीतियों को बेरोकटोक लागू करने के लिए लोगों के बुनियादी लोकतांत्रिक अधिकारों पर भी डाका डाल रही हैं। राज्य मशीनरी के स्वरूप में फासीवादी हमलों की परिघटना दिन-प्रतिदिन मजबूत होती जा रही है।