आज दिनांक 19 मार्च 2025 को श्रीमंत शंकर देव चेयर, पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ द्वारा राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
आज दिनांक 19 मार्च 2025 को श्रीमंत शंकर देव चेयर, पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ द्वारा राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ मंगलाचरण के माध्यम से किया गया। इस संगोष्ठी के प्रथम सत्र में पंजाब विश्वविद्यालय के डायरेक्टर रिसर्च प्रोफेसर योजना रावत मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं। प्रोफेसर रावत ने शंकर देव की मानवातवाद, अध्यात्म एवं भक्ति के विभिन्न पक्षों का उपस्थापन करते हुए शंकरदेव के उत्कृष्ट कार्यों से भारतीय संस्कृति की सुरक्षा का विवेचन किया। उन्होंने शंकर देव के प्रति नमन करती हुई असम सरकार एवं पी. यू. की कुलपति प्रो रेणु विग के प्रति कृतज्ञता व्यक्त किया एवं शंकरदेव चेयर द्वारा विगत दो वर्षों में किए गए कार्यक्रमों की सराहना की।
आज दिनांक 19 मार्च 2025 को श्रीमंत शंकर देव चेयर, पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ द्वारा राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ मंगलाचरण के माध्यम से किया गया। इस संगोष्ठी के प्रथम सत्र में पंजाब विश्वविद्यालय के डायरेक्टर रिसर्च प्रोफेसर योजना रावत मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं। प्रोफेसर रावत ने शंकर देव की मानवातवाद, अध्यात्म एवं भक्ति के विभिन्न पक्षों का उपस्थापन करते हुए शंकरदेव के उत्कृष्ट कार्यों से भारतीय संस्कृति की सुरक्षा का विवेचन किया। उन्होंने शंकर देव के प्रति नमन करती हुई असम सरकार एवं पी. यू. की कुलपति प्रो रेणु विग के प्रति कृतज्ञता व्यक्त किया एवं शंकरदेव चेयर द्वारा विगत दो वर्षों में किए गए कार्यक्रमों की सराहना की।
पंजाब विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार प्रो वाई पी वर्मा ने शंकर देव के योगदान को बताते हुए उनके द्वारा प्रदत्त पथों को अनुकरण करने की सराहना की।
संगोष्ठी के मुख्य वक्ता डॉ शंभूनाथ मिश्रा, दिल्ली विश्वविद्यालय दिल्ली से उपस्थित रहे, जिन्होंने शंकर देव के भक्ति आंदोलन तथा राष्ट्रीय उत्थान के विभिन्न पक्षों का उपस्थापन किया। उन्होंने शंकर देव के समन्वय और संगठन रुपी विशेष दो कार्यक्रमों से भारतीय एकता को दर्शाते हुए एकशरण धर्म की विशद् चर्चा की। उन्होंने बहुदेववाद, ईश्वर की सर्वव्यापकता एवं नाम जप के महत्व को भी दर्शाया है। मुख्य अतिथि के रूप में डॉ मल्लिका कंडाली गुवाहाटी असम से उपस्थित रहीं, जिन्होंने शंकर देव के भक्ति के विभिन्न मार्गों को दर्शाते हुए राष्ट्रीय उत्थान में उनके शैक्षिक महत्व को दर्शाया एवं यह बताया कि शंकरदेव ने अनेक शास्त्रों का अध्ययन कर उनको जन सामान्य तक पहुंचाने का अथक प्रयास किया है।
द्वितीय सत्र के मुख्य वक्त्री के रूप में उपस्थित डॉ अर्शिया सेठी ने शंकर देव एवं श्री गुरु नानक देव के विभिन्न कार्यों में समानता दिखाते हुए यह बताया कि जिस प्रकार श्री गुरु नानक उत्तर भारत में राष्ट्रीय उत्थान में कार्य कर रहे थे ठीक इसी प्रकार असम में शंकरदेव का कार्य था। उन्होंने बताया कि शंकरदेव ने जातिवाद उच्च नीच एवं अमीर गरीब को छोड़कर सभी को भक्ति करने का अधिकार देते हुए एक शरण धर्म की स्थापना की द्वितीय वक्ता के रूप में उपस्थित डॉ मिलन नियोग असम से उपस्थित रहे जिन्होंने शंकर देव के शैक्षिक महत्व, नाट्यशैली, नृत्यकला, काव्यरचना, धार्मिक योगदान एवं आध्यात्मिक योगदान को बताते हुए सामाजिक कार्यों के संदर्भ में गहन चर्चा की।
डॉ मिलन ने बताया कि शंकरदेव का प्रमुख उद्देश्य सब को शिक्षित करना था, जो व्यक्ति पढ़ लिख नहीं सकते थे उनको कविता, नाटक व अभिनय के माध्यम से शिक्षित करना था। इस सत्र की अध्यक्षता कर रही डॉ सोनाली ने दोनों वक्ताओं की सराहना की एवं शंकरदेव के कार्यों को अनुकरणीय बताया।
तृतीय सत्र में दो मुख्य वक्ता उपस्थित रहे, जिसमें डॉ भावानंद ने शंकर देव के सामान्य परिचय को बताते हुए नाट्यशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य में सत्रिय नृत्य के विभिन्न पक्षों का उपस्थापन किया एवं अंकिया भावन को भी बताया तथा अपने नाट्य कौशल से सभी को मंत्र मुग्ध किया। द्वितीय वक्त्री के रूप में डॉ सोनाली ने शंकर देव के धार्मिक एवं नैतिक पक्ष को रखते हुए एक सरण धर्म की। इस संगोष्ठी में ३० शोध-पत्र पढ़ें गए।
