पंजाबी दलित साहित्य: चेतना और चिंतन' पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन पंजाबी अध्ययन विद्यालय और पंजाब कला परिषद द्वारा किया गया

"पंजाबी अध्ययन स्कूल, पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ द्वारा पंजाब कला परिषद के सहयोग से 10 मार्च 2025 को 'पंजाबी दलित साहित्य: चेतना और चिंतन' विषय पर एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया। उद्घाटनी सत्र में प्रो. योगराज मुखी, पंजाबी विभाग ने मेहमान शख्सियतों का स्वागत करते हुए कहा कि इस सेमिनार की सार्थकता आजकल के समय में और भी बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि दलित साहित्य चिंतन के माध्यम से पंजाब के विभिन्न मुद्दों पर संवाद रचना इस सेमिनार का प्रमुख उद्देश्य है।

"पंजाबी अध्ययन स्कूल, पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ द्वारा पंजाब कला परिषद के सहयोग से 10 मार्च 2025 को 'पंजाबी दलित साहित्य: चेतना और चिंतन' विषय पर एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया। उद्घाटनी सत्र में प्रो. योगराज मुखी, पंजाबी विभाग ने मेहमान शख्सियतों का स्वागत करते हुए कहा कि इस सेमिनार की सार्थकता आजकल के समय में और भी बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि दलित साहित्य चिंतन के माध्यम से पंजाब के विभिन्न मुद्दों पर संवाद रचना इस सेमिनार का प्रमुख उद्देश्य है।
प्रो. योगराज ने इस बात पर जोर दिया कि भले ही पंजाब कई संकटों में फंसा हुआ है, लेकिन इसके नवसृजन के लिए हमें सपने जरूर देखने चाहिए। इस दौरान मेहमान शख्सियतों ने शमा रोशन करने की रस्म अदा की और साथ ही पंजाबी अध्ययन स्कूल के नए 'खोज' अंक परख को लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया।
इस दौरान पंजाब कला परिषद के चेयरमैन और प्रसिद्ध कवि स्वर्णजीत सवी ने उद्घाटनी भाषण में कहा कि आज के समय में पंजाब की हालत चिंताजनक है, लेकिन ऐसे कार्यक्रमों के ज़रिए नई उम्मीदें की जा सकती हैं। पंजाबी के प्रमुख चिंतक स्वराजबीर ने दलित, अछूत और शूद्र शब्दों की परंपरा और इतिहास के बारे में जानकारी दी। उन्होंने अंबेडकर के हवाले से पंजाबी दलित साहित्य के बारे में बात करते हुए कहा कि दलित जात-पात के विकृत छायाओं की तरह दबा हुआ है और हमें समाज के इस तबके के सच को गंभीरता से देखना चाहिए।
विशिष्ट मेहमान के रूप में प्रसिद्ध चिंतक अमरजीत गरेवाल ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि पंजाब के मुद्दों पर विचार करने के लिए विशेष रूप से युवाओं को समझना जरूरी है। उन्होंने कहा कि उत्पादन के लिए भूमि, पूंजी और तकनीक प्रमुख स्रोत हैं, लेकिन इन तीनों से जुड़े लोगों का शोषण बढ़ता जा रहा है।
अपने अध्यक्षीय भाषण में पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला के प्रो. जसविंदर सिंह ने साहित्य की सामाजिक उपयोगिता पर चर्चा करते हुए कहा कि साहित्य हमें सांस लेना और अच्छा इंसान बनना सिखाता है। समाज के सभी मुद्दों का हल मनुष्य की आंतरिक संवेदना के माध्यम से ही संभव है। इस कारण हमें अपनी आत्मा की आवाज़ सुननी चाहिए।
मंच संचालन की भूमिका निभाते हुए प्रो. सरबजीत सिंह ने कहा कि दलित साहित्य चिंतन समाज के उस वर्ग की समस्या है जो हमेशा से सामाजिक शोषण का शिकार रहा है।
सत्र के अंत में प्रो. उमा सेठी जी ने मेहमान शख्सियतों का धन्यवाद किया।"