
बाढ़ का कहर - जनता बेहाल
पंजाब इन दिनों बाढ़ की मार झेल रहा है। पंजाब की तीन नदियों के आसपास के क्षेत्र भारी परेशानियों और तबाही का सामना कर रहे हैं। भले ही हम इसे प्राकृतिक आपदा कह सकते हैं, लेकिन काफी हद तक मानवीय गलतियाँ भी इस आपदा का कारण बन रही हैं। पंजाब में बाढ़ का मुख्य कारण पड़ोसी राज्यों हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में अचानक बादल फटना और पौंग डैम और भाखड़ा डैम में जल स्तर बढ़ने के कारण फ्लड गेट खोलना है।
पंजाब इन दिनों बाढ़ की मार झेल रहा है। पंजाब की तीन नदियों के आसपास के क्षेत्र भारी परेशानियों और तबाही का सामना कर रहे हैं। भले ही हम इसे प्राकृतिक आपदा कह सकते हैं, लेकिन काफी हद तक मानवीय गलतियाँ भी इस आपदा का कारण बन रही हैं। पंजाब में बाढ़ का मुख्य कारण पड़ोसी राज्यों हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में अचानक बादल फटना और पौंग डैम और भाखड़ा डैम में जल स्तर बढ़ने के कारण फ्लड गेट खोलना है। इस समय ब्यास, सतलुज और रावी नदियाँ खतरनाक स्तर पर बह रही हैं। इन नदियों पर बने डैमों के गेट खोलना सरकारों और प्रशासनिक एजेंसियों की मजबूरी है। नतीजतन, जिन जिलों से होकर ये नदियाँ बहती हैं, वहाँ इस समय हालात चिंताजनक बने हुए हैं। कई जिलों में स्कूल बंद कर दिए गए हैं। लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए कहा जा रहा है। कई गाँवों का जिला मुख्यालयों से संपर्क टूट गया है।
सन् 1988 में पंजाब ने सबसे अधिक बाढ़ की मार झेली थी, जब सभी नदियाँ उफान पर आ गई थीं, जिसके कारण हजारों लोग बेघर हो गए और सैकड़ों लोगों की मृत्यु हो गई। यह लगभग हर साल बरसात के मौसम की आपदा है, जिसका सामना उत्तरी भारत के राज्यों को करना पड़ता है। यदि आज की बात करें, तो पंजाब के 19 जिलों के 1400 से अधिक गाँवों में सतलुज, ब्यास, रावी और घग्गर नदियों का पानी फसलों, पशुओं और लोगों पर कहर बनकर टूटा है। राज्य सरकार ने भले ही अपने स्तर पर लोगों को इस मुसीबत से बचाने के लिए व्यापक प्रबंध किए हैं। 25,000 से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया गया है। अब तक पंजाब में तीन दर्जन से अधिक लोग अपनी जान गँवा चुके हैं। कई लोग लापता हैं। लगभग 260 घर ढह चुके हैं। इस त्रासदी के सबसे बड़े शिकार बेजुबान पशु हैं। उन्हें चारे और रहने की जगह की समस्या का सामना करना पड़ता है। कई जानवर बाढ़ के पानी में बह जाते हैं।
पंजाब सरकार लोगों को कई तरह की हिदायतें भी जारी कर रही है ताकि जान-माल के नुकसान से बचा जा सके। कई क्षेत्रों और गाँवों को खाली करवाया गया है। लोगों को हर तरह से सतर्क रहने के लिए कहा गया है। प्रभावित क्षेत्रों में 168 स्थानों पर राहत शिविर स्थापित किए गए हैं और 243 स्थानों पर लोगों को चिकित्सा सहायता प्रदान करने के लिए मेडिकल शिविर भी लगाए गए हैं। हम पानी को जीवन मानते हैं। यदि इतिहास पर नजर डालें, तो विश्व की सभी सभ्यताएँ नदियों के किनारों पर ही बसी और फली-फूली हैं। यदि इन जीवनदायी नदियों का पानी इतना घातक होता, तो विश्व की सभ्यताएँ नदियों के किनारों को अपना ठिकाना न बनातीं।
बाढ़ के कारण हो रही तबाही के मुख्य कारण हैं हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में भारी बारिश, बादल फटना और डैमों में रोके गए पानी को नदियों में छोड़ना। नदियों, मौसमी नालों और नहरों के प्रवाह में रुकावटें आने के कारण ये अपना रास्ता बदल रही हैं। सतलुज के धुसी बाँध में दरार पड़ने के कारण जालंधर, कपूरथला, तरनतारन और फिरोजपुर जिलों के 100 से अधिक गाँव पानी की चपेट में आ गए हैं। नदियों, नालों और मौसमी खड्डों की समय पर सफाई की आवश्यकता होती है। इनकी उचित समय पर सफाई न होना भी बाढ़ का एक बड़ा कारण है। सतलुज अविभाजित पंजाब की सबसे लंबी नदी है, लेकिन इसका अधिकांश पानी भाखड़ा डैम की गोबिंद सागर झील में एकत्र किया जाता है, जिसके कारण यह नदी साल के ज्यादातर समय बहुत कम पानी के साथ बहती है। लोगों ने भविष्य के खतरों की कल्पना किए बिना इसके जलग्रहण क्षेत्रों में खेती शुरू कर दी है। कई जगहों पर घर, बस्तियाँ और झुग्गियाँ बना ली गई हैं। बरसात के मौसम में इन पर सबसे ज्यादा मार पड़ती है।
समय की आवश्यकता यह है कि सरकार और आम लोग बाढ़ प्रभावित लोगों की हर संभव सहायता करें। लोगों के लिए रहने और खाने की उचित व्यवस्था हो। पशुओं और डंगरों की देखभाल और चारे की व्यवस्था हो।
—दविंदर कुमार
