ज्वलंत मुद्दा: आवारा कुत्तों का पुनर्वास

हाल के दिनों में आवारा जानवरों की समस्या, विशेष रूप से आवारा कुत्तों की लगातार बढ़ती संख्या, चर्चा का एक गर्मागर्म विषय बन गया है। यह शहरीकरण से जुड़ी प्रमुख समस्याओं में से एक बड़ी और गंभीर समस्या है। वास्तव में, यह पूरे देश के लिए एक चुनौती है। आवारा कुत्तों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि जन स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए खतरा बन रही है। ऐसी कई खबरें सामने आती हैं जिनमें ये कुत्ते छोटे बच्चों या बुजुर्गों पर हमला करते हैं, और कई बार मृत्यु भी हो जाती है।

हाल के दिनों में आवारा जानवरों की समस्या, विशेष रूप से आवारा कुत्तों की लगातार बढ़ती संख्या, चर्चा का एक गर्मागर्म विषय बन गया है। यह शहरीकरण से जुड़ी प्रमुख समस्याओं में से एक बड़ी और गंभीर समस्या है। वास्तव में, यह पूरे देश के लिए एक चुनौती है। आवारा कुत्तों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि जन स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए खतरा बन रही है। ऐसी कई खबरें सामने आती हैं जिनमें ये कुत्ते छोटे बच्चों या बुजुर्गों पर हमला करते हैं, और कई बार मृत्यु भी हो जाती है। 
आवारा जानवर उन्हें कहा जाता है जिनके रहने या पालन-पोषण का कोई उचित प्रबंध नहीं होता। वे रोजाना गलियों, मोहल्लों या खाली स्थानों पर भटकते नजर आते हैं। वे हर दिन भुखमरी, बीमारियों, डर और अत्याचारों का शिकार होते हैं। दिल्ली जैसे घनी आबादी वाले शहरों के लिए यह समस्या और भी गंभीर है।
 एक अनुमान के अनुसार, यहाँ लगभग एक करोड़ आवारा कुत्ते हैं। हाल ही में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने एक आदेश जारी किया है, जिसमें सरकार को सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर, उनका टीकाकरण करने, नसबंदी करने और उन्हें निर्धारित आश्रय स्थलों में रखने का निर्देश दिया गया है। संबंधित अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि ये कुत्ते सार्वजनिक स्थानों पर वापस न आएँ। इन आदेशों को लेकर लोगों की मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ देखने और सुनने को मिल रही हैं। 
भारत में उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार, लगभग 37 लाख लोग हर साल कुत्तों के काटने के कारण घायल होते हैं। कुछ मामलों में लापरवाही के कारण इंसान की मृत्यु भी हो जाती है। हमारे देश में प्रचलित धार्मिक मान्यताओं के कारण इनकी आबादी को नियंत्रित करना एक कठिन कार्य है। यदि पश्चिमी देशों की बात करें, तो वहाँ यह समस्या कोई गंभीर मुद्दा नहीं है। नीदरलैंड एक ऐसा देश है जहाँ CNVR नीति के माध्यम से आवारा कुत्तों की संख्या को शून्य कर दिया गया है। CNVR का अर्थ है - एकत्र करना, नसबंदी करना, टीकाकरण करना और (वापस छोड़ना)।
 इस देश में पालतू जानवरों को खुले में छोड़ने के बारे में सख्त कानून हैं। कुछ देशों में ऐसे कार्यक्रम भी बनाए जाते हैं जिनके तहत आम लोग इन जानवरों को पालतू जानवरों की तरह अपनाते हैं और उनकी पूरी देखभाल की जिम्मेदारी उठाते हैं। लेकिन हमारे देश में लोग इन्हें भोजन देना या अस्थायी रूप से सहारा देना तो पुण्य का कार्य समझकर करते हैं, लेकिन स्थायी रूप से इनका उत्तराधिकारी बनने की हिम्मत कोई नहीं करता।
भारत एक ऐसा देश है जो लंबे समय से अहिंसा के सिद्धांतों पर चलता आया है। यहाँ के लोगों की विचारधारा का आधार है "जियो और जीने दो"। पशुओं और जानवरों के प्रति दया, रहम और लगाव की प्रवृत्ति हमारे स्वभाव का हिस्सा है। कुत्ते सदियों से हमारे समाज और परिवेश का हिस्सा रहे हैं, जो हमारे साथी, रक्षक और सहायक जैसी विभिन्न भूमिकाएँ निभाते आए हैं। 
ब्रिटिश शासन के दौरान भी आवारा कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करने के लिए कई तरह की योजनाएँ अपनाई गई थीं, जिनमें मुख्य रूप से सामूहिक रूप से जहर देकर मारना शामिल था। यह प्रथा स्वतंत्रता के बाद भी कई वर्षों तक चलती रही। स्थानीय लोगों द्वारा इन तरीकों का हमेशा विरोध किया गया है।
जैसे-जैसे लोगों में इन जानवरों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ी है, वैसे-वैसे इनके अस्तित्व और अधिकारों के प्रति जागरूकता भी पैदा हुई है। आज, भले ही हर इंसान आवारा पशुओं, विशेष रूप से गली-मोहल्लों में मौजूद कुत्तों की समस्या का समाधान चाहता है, लेकिन इनके प्रति दया की भावना रखते हुए नरमी वाले समाधान की वकालत करता है। पशु प्रेमियों के अपने तर्क हैं। उनका मानना है कि अगर कोई कुत्ता किसी को काटता भी है, तो उसकी लार से फैलने वाला रैबीज वायरस एक बहुत ही कमजोर कीटाणु होता है, जो केवल साबुन से जख्म को धोने से खत्म हो जाता है। 
इन जानवरों को उनके रहने की जगहों से विस्थापित करना उनके प्रति अत्याचार है। अगर इन्हें मोहल्लों-गलियों से पकड़कर सरकारी आश्रयों में एकत्र रखा जाएगा, तो इनके जीवन पर प्रश्नचिह्न लग जाएगा। ये आपस में लड़कर मर जाएँगे। इनकी उचित देखभाल को कैसे सुनिश्चित किया जाएगा, यह भी एक सवाल है। खैर, सरकार जो भी करेगी, वह किसी उचित योजना के तहत ही होगा।

—दविंदर कुमार

- देविंदर कुमार