संपादक: दविंदर कुमार

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लेखक :- पैग़ाम-ऐ-जगत

वीरता और बलिदान की अनूठी मिसाल: भारतीय सेना

सीमाओं पर तैनात सुरक्षा बलों का गौरवशाली इतिहास हमें देश के वीर योद्धाओं के अद्वितीय बलिदानों की याद दिलाता है। स्वतंत्रता के बाद 1971 के युद्ध के परिणामस्वरूप विश्व मानचित्र पर एक नए राष्ट्र का उदय हुआ- बांग्लादेश। इस युद्ध में भारतीय सशस्त्र बलों ने निर्णायक विजय हासिल की, जिसमें पाकिस्तान के 93 हजार युद्धबंदी पकड़े गए। इसी प्रकार, जुलाई 1987 से मार्च 1990 की अवधि के दौरान भारतीय सेना ने श्रीलंका में तमिल आतंकवादियों से युद्ध किया और वहां शांति स्थापित की।

सीमाओं पर तैनात सुरक्षा बलों का गौरवशाली इतिहास हमें देश के वीर योद्धाओं के अद्वितीय बलिदानों की याद दिलाता है। स्वतंत्रता के बाद 1971 के युद्ध के परिणामस्वरूप विश्व मानचित्र पर एक नए राष्ट्र का उदय हुआ- बांग्लादेश। इस युद्ध में भारतीय सशस्त्र बलों ने निर्णायक विजय हासिल की, जिसमें पाकिस्तान के 93 हजार युद्धबंदी पकड़े गए। इसी प्रकार, जुलाई 1987 से मार्च 1990 की अवधि के दौरान भारतीय सेना ने श्रीलंका में तमिल आतंकवादियों से युद्ध किया और वहां शांति स्थापित की। 
3 नवंबर 1988 को हमारे सशस्त्र बलों ने मालदीव में वहां की सरकार को उखाड़ फेंकने के प्रयास को विफल कर दिया और पूरी दुनिया को दिखा दिया कि भारतीय सेना कितनी तेजी और कुशलता से प्रतिक्रिया करती है। हमें अपनी सैन्य शक्ति पर गर्व है। वीरता, बलिदान और दृढ़ संकल्प के मामले में दुनिया में इसका कोई सानी नहीं है। मई 1999 से जुलाई 1999 के बीच हुए कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सशस्त्र घुसपैठियों को करारा जवाब दिया गया। 3 मई 1999 तक यह स्पष्ट हो गया था कि पाकिस्तानी घुसपैठियों ने द्रास और उसके आसपास की ऊंची चोटियों पर अपना डेरा जमा लिया था। 
इनमें पाकिस्तानी सेना के नियमित जवान भी शामिल थे, जो नियंत्रण रेखा को बदलने की कोशिश कर रहे थे। वैसे तो भारत की सीमाएं कई देशों से मिलती हैं, लेकिन इसका मुख्य संघर्ष पाकिस्तान और चीन के साथ रहा है। 1999 में कारगिल युद्ध का मुख्य कारण पाकिस्तानी सेना द्वारा भारत की अग्रिम पंक्ति पर कब्जा करना था। घुसपैठियों को खदेड़ने और अवैध कब्जे को आजाद कराने के लिए भारत ने ऑपरेशन विजय चलाया। हमारी सेना को उल्लेखनीय सफलता मिली। 
हमारा देश शुरू से ही युद्धों और संघर्षों का शिकार रहा है। हालांकि भारतीय सेना ने आजादी के बाद लड़े गए हर युद्ध में त्याग और देशभक्ति के अनूठे उदाहरण पेश किए हैं। लेकिन युद्ध कभी खुशी नहीं लाता। कारगिल युद्ध के बाद मुझे इसमें शहीद हुए अफसरों और सैनिकों के परिवारों से मिलने का मौका मिला। यह एक कड़वी सच्चाई है कि युद्ध कभी भी किसी देश या उसके लोगों या सैनिकों के लिए खुशी नहीं लाता। कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवान और अफसर बहुत कम उम्र में ही इस दुनिया से चले गए। 
मुझे इस युद्ध में पालमपुर के शहीद कैप्टन सौरभ कालिया के घर जाने का अवसर मिला, जिन्होंने मात्र 22 वर्ष की आयु में देश के लिए अपना बलिदान दे दिया। उनके परिवार ने उनके अंतिम क्षणों में उनके पास मौजूद हर चीज को संभाल कर रखा है तथा कैप्टन कालिया की याद में अपने घर में एक संग्रहालय में रखा है। कैप्टन सौरभ कालिया कारगिल युद्ध में शहीद होने वाले पहले भारतीय सैन्य अधिकारी थे। उन्हें पांच अन्य सैनिकों के साथ गश्त के दौरान पाकिस्तानी सेना ने पकड़ लिया था तथा 22 दिनों तक अमानवीय यातनाएं देने के बाद उन्हें बेरहमी से शहीद कर दिया गया था। उनके पिता डॉ. नरिंदर कालिया जी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर न्याय के लिए लड़ाई लड़ी। 
इन दिनों भारत सरकार द्वारा चलाए गए "ऑपरेशन सिंधुर" की सफलता के बाद मीडिया में कुछ राजनीतिक नेताओं तथा आम लोगों की निम्न स्तरीय टिप्पणियां पढ़ने-सुनने को मिल रही हैं। इनका पूरे देश के मनोबल पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। हम सभी जानते हैं कि -50 से +50 डिग्री सेल्सियस तक की अत्यंत भयानक परिस्थितियों में देश की सेवा करने वाले वीर सैनिक केवल वेतन के लिए सीमाओं पर तैनात नहीं होते। उनके दिल में देशहित के लिए बलिदान की भावना होती है। हम यह भी देखते हैं कि पिछले दशकों में शहीद हुए सैनिक और अधिकारी केवल पुत्र या पुत्रियाँ ही थे। 
कुछ अधिकारी तो अपनी तीसरी पीढ़ी से सेना में भर्ती हुए हैं। उन्हें और उनके परिवार को इस सेवा से होने वाली कठिनाइयों का पता होने के बावजूद उन्होंने देश सेवा का यह मार्ग चुना। हमारे सैनिक युद्ध या अन्य आंतरिक खतरों के समय हमेशा देशवासियों के साथ चट्टान की तरह खड़े रहते हैं। जब भी देश में या पड़ोसी मित्र देश में कोई प्राकृतिक आपदा आई है, हमारी सेनाएँ आखिरी उम्मीद बनकर पहुँची हैं और लोगों को राहत और जीवन दिया है। 
सचमुच, भारतीय सेना साहस और निस्वार्थ भावना का जीवंत प्रतीक है जो दिन-रात देश की सीमाओं की रक्षा करके हमारी सुरक्षा और मानसिक शांति सुनिश्चित करती है। इतिहास गवाह है, भारतीय सेना ने हमेशा अनुशासन और कर्तव्य के प्रति अटूट प्रतिबद्धता दिखाई है। आइए हम कारगिल युद्ध में शहीद हुए कैप्टन विकरण बत्रा की प्रतिज्ञा को याद करें, "या तो मैं तिरंगा फहराकर लौटूंगा, या उसमें लिपटा हुआ लौटूंगा, लेकिन मैं जरूर लौटूंगा।"

- देविंदर कुमार
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