
श्रीमद्भागवत आत्मा में भक्ति, ज्ञान और त्याग की भावना जगाती है और इसके श्रवण से पाप पुण्य में बदल जाते हैं - श्री आनंद जी महाराज बृंदावन धाम
गढ़शंकर 24 अप्रैल - माता नैना देवी मंदिर झोनोवाल बीट में चल रही भागवत कथा का समापन हो गया। कथा के अंत में हवन यज्ञ एवं भंडारा हुआ। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने पहले हवन यज्ञ किया और फिर प्रसाद खाकर पुण्य लाभ कमाया। भागवत कथा का आयोजन मां नैना देवी समिति राकेश कुमार सिमरन एवं समस्त झाली परिवार द्वारा किया गया।
गढ़शंकर 24 अप्रैल - माता नैना देवी मंदिर झोनोवाल बीट में चल रही भागवत कथा का समापन हो गया। कथा के अंत में हवन यज्ञ एवं भंडारा हुआ। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने पहले हवन यज्ञ किया और फिर प्रसाद खाकर पुण्य लाभ कमाया। भागवत कथा का आयोजन मां नैना देवी समिति राकेश कुमार सिमरन एवं समस्त झाली परिवार द्वारा किया गया।
भागवत महापुराण कथा ज्ञान यज्ञ के दौरान कथावाचक श्री आनंद जी महाराज बृंदावन धाम जी ने लोगों को 7 दिनों तक चलने वाली श्रीमद्भागवत कथा की महिमा बताई। उन्होंने लोगों से भक्ति मार्ग से जुड़कर अच्छे कर्म करने को कहा। श्री आनन्द जी महाराज ने कहा कि हवन-यज्ञ से न केवल वातावरण एवं वातावरण शुद्ध होता है बल्कि व्यक्ति को आध्यात्मिक शक्ति भी मिलती है। व्यक्ति में धार्मिक आस्था जागृत होती है। बुराइयों की जगह अच्छाई के द्वार खुलते हैं। यज्ञ से देवता प्रसन्न होते हैं और मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। उन्होंने कहा कि भागवत कथा सुनने से मनुष्य भवसागर से पार हो जाता है।
श्रीमद्भागवत आत्मा में भक्ति, ज्ञान और त्याग की भावना पैदा करती है। इसके श्रवण मात्र से ही पाप पुण्य में बदल जाते हैं। जब विचारों में परिवर्तन होता है तो मनुष्य का व्यवहार भी बदल जाता है। हवन यज्ञ के दौरान विशेष रूप से पहुंचे महाराज संतोष जी का स्वर्ग आश्रम गरली परागपुर हिमाचल प्रदेश के हजारों श्रद्धालुओं ने पुष्प वर्षा कर स्वागत किया और उनके नारों से पूरे गांव का माहौल भक्तिमय हो गया। उन्होंने भक्तों को आशीर्वाद देते हुए कहा कि भगवान की भक्ति से ही मोक्ष का मार्ग मिलता है।
इसलिए, आपको और आपके बच्चों सहित सभी को भगवान की पूजा में शामिल होना चाहिए। भंडारे के प्रसाद का वर्णन करते हुए महाराज संतोष जी ने कहा कि प्रसाद तीन अक्षरों से मिलकर बना है। पहला प्र यानी भगवान, दूसरा सा यानी प्रकट और तीसरा यानी साक्षात् दर्शन। जिसे हम सब प्रसाद कहते हैं। प्रत्येक कथा या अनुष्ठान में एक सार होता है जो मन, बुद्धि और हृदय को शुद्ध करता है। मानव शरीर भी ईश्वर का दिया हुआ सर्वोत्तम उपहार है। जीवन में प्रसाद का अपमान करने से भगवान का अपमान होता है। भगवान को अर्पित किए गए भोजन का बचा हुआ भाग मनुष्य के लिए प्रसाद बन जाता है।
इससे पहले कथा के अंत में विधि-विधान से पूजा, हवन और यज्ञ किया गया और माता नैना देवी पर ध्वजारोहण किया गया। इसके बाद अटूट भंडारा लगाकर प्रसाद वितरित किया गया।
