
आज का विद्वान समाज आधुनिक जीवन की आपाधापी में पूर्ण सतगुरु के महत्व को भूल गया है।
होशियारपुर- श्री प्राचीन शिव मंदिर प्रबंधक कमेटी महिलवाली होशियारपुर में सत्संग का आयोजन किया गया, जिसमें गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री अंजलि भारती जी ने गुरु संगत को आध्यात्मिक प्रवचन दिए। साध्वी जी ने अपने प्रवचनों में बताया कि आज का विद्वान समाज आधुनिक जीवन की आपाधापी में पूर्ण सतगुरु के महत्व को भूल गया है।
होशियारपुर- श्री प्राचीन शिव मंदिर प्रबंधक कमेटी महिलवाली होशियारपुर में सत्संग का आयोजन किया गया, जिसमें गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री अंजलि भारती जी ने गुरु संगत को आध्यात्मिक प्रवचन दिए। साध्वी जी ने अपने प्रवचनों में बताया कि आज का विद्वान समाज आधुनिक जीवन की आपाधापी में पूर्ण सतगुरु के महत्व को भूल गया है।
लेकिन इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि महान मानवीय गुणों का विकास हमेशा सतगुरु की कृपा से ही हुआ है। स्वामी वीरजानंद जी का आश्रम दयानंद सरस्वती की निर्माण स्थली थी, तो समर्थ गुरु रामदास जी की शक्ति ने ही शिव को छत्रपति शिवाजी बनाया। चाणक्य की कुटिया चंद्रगुप्त मौर्य का प्रशिक्षण केंद्र थी, तो नरेंद्र में छिपे विवेकानंद को परमहंस के कुशल हाथों ने गढ़ा था।
राजा जनक को राजनीतिक परिवेश में रहते हुए भी 'विदेशी' बनाने वाले गुरु गुरु अष्टावक्र थे। इसका तात्पर्य यह है कि जब भी कोई महान व्यक्ति समाज के आकाश में चमकता था, तो उसके चमकने के पीछे गुरु की कृपा का प्रकाश ही काम करता था।
ऐसे महान लोग समाज को सदैव गुरु ही देते हैं। इसीलिए शास्त्रों में सद्गुरु की तुलना ब्रह्मा, विष्णु और महेश से की गई है। जिस प्रकार ब्रह्मा सृष्टि के रचयिता हैं, उसी प्रकार गुरु अपने शिष्य को आध्यात्मिक जगत में जन्म देते हैं।
जब शिष्य आध्यात्मिक जन्म लेता है, तो वह अंतर्जगत में प्रवेश कर प्रभु के साम्राज्य से सीधा संवाद कर सकता है। लेकिन केवल अंतर्जगत में प्रवेश करना ही पर्याप्त नहीं है। अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निरंतर आगे बढ़ना भी आवश्यक है। आगे बढ़ते समय इस बात की संभावना बनी रहती है कि रास्ते में कुछ बाधाएं और रुकावटें आएं, ऐसी स्थिति में गुरु शिष्य की रक्षा करते हैं, हर पल उसकी सहायता करते हैं।
जिस प्रकार भगवान विष्णु ब्रह्मा द्वारा रची गई सृष्टि का पालन-पोषण करते हैं। ब्रह्मा द्वारा रची गई इस सृष्टि में भगवान शिव संहार का कार्य संभालते हैं। उसी प्रकार गुरु भी शिष्य की दुष्ट प्रवृत्तियों का नाश करते हैं! उसके हृदय में बसे दुर्गुण! काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार आदि जो उसे दीमक की तरह खोखला कर रहे हैं। गुरु शिष्य के जन्म-जन्मान्तर के कर्मों और बुरी आदतों का नाश करते हैं।
इसीलिए गुरु को 'शिव' भी कहा जाता है। नमस्ते, सुप्रभात। इस अवसर पर जतिंदर कुमार सरपंच मांझी, अश्वनी कुमार, सुरिंदर कुमार, केवल कृष्ण, विवेक सेठी, राकेश कुमार, श्रेष्ठ कुमार, बिल्ला दिलावर, अविनाश शर्मा, विजय चौहान, दीपू और प्रमोद शर्मा मौजूद थे।
