केन्द्रीय विधानसभा ने भारतीय संघीय ढांचे को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया - पवन हरचंदपुरी

केन्द्रीय पंजाबी लेखक संघ (सेखों) रजि. अध्यक्ष पवन हरचंदपुरी ने समाचार पत्रों को दिए बयान में कहा कि पिछले काफी समय से विभिन्न राज्यों के राज्यपाल केन्द्रीय राजनीति के उद्देश्य से विधानसभाओं द्वारा पारित महत्वपूर्ण विधेयकों को विवाद व अधर में लटकाकर भारतीय लोकतंत्र, संघीय ढांचे व संविधान को कमजोर करने का प्रयास कर रहे थे, जिसके कारण बुद्धिजीवियों व जागरूक लोगों को राज्यों के अधिकारों, भारतीय लोकतंत्र व संघीय ढांचे को बचाने की सख्त जरूरत महसूस हो रही थी।

केन्द्रीय पंजाबी लेखक संघ (सेखों) रजि. अध्यक्ष पवन हरचंदपुरी ने समाचार पत्रों को दिए बयान में कहा कि पिछले काफी समय से विभिन्न राज्यों के राज्यपाल केन्द्रीय राजनीति के उद्देश्य से विधानसभाओं द्वारा पारित महत्वपूर्ण विधेयकों को विवाद व अधर में लटकाकर भारतीय लोकतंत्र, संघीय ढांचे व संविधान को कमजोर करने का प्रयास कर रहे थे, जिसके कारण बुद्धिजीवियों व जागरूक लोगों को राज्यों के अधिकारों, भारतीय लोकतंत्र व संघीय ढांचे को बचाने की सख्त जरूरत महसूस हो रही थी। 
भारत में संघीय ढांचे को कमजोर करके, राज्यों की शक्तियों को कम करके केन्द्रीकरण की नीतियां अपनाई जा रही थीं, जो भारतीय संविधान के अनुसार गलत थी, क्योंकि भारत एक बहुराष्ट्रीय, बहुभाषी व बहुसांस्कृतिक देश है। ये प्रयास भारतीय संविधान के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं। विधानसभाओं द्वारा पारित अत्यावश्यक विधेयकों का समय रहते निपटारा करने के बजाय राज्यपाल अपनी राय व सहमति माननीय राष्ट्रपति को भेज देते थे, जो कि बिना निपटाए रह जाती थी। 
इस प्रकार राज्य विधानसभाओं की कानून बनाने की शक्तियों को कुचला गया तथा राज्य सरकारों के काम में बाधा उत्पन्न की गई। तमिलनाडु सरकार की अपील पर निर्णय करते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री जे.बी. पारदीवाला तथा आर. माधवन की खंडपीठ ने माननीय राष्ट्रपति की असीमित शक्तियों पर प्रतिबंध लगाने तथा विधेयकों को तीन माह के भीतर राज्यपाल के पास वापस भेजने का निर्णय दिया है|
 माननीय राज्यपालों को विधेयकों को समय पर पारित करने के लिए आवश्यक निर्देश भी दिए हैं, जो बहुत ही सही तथा उचित हैं। इस संबंध में केन्द्रीय विधानसभा भी केन्द्र सरकार से अनुरोध करती है कि इन निर्णयों को यथावत बनाए रखें, ताकि भारतीय संविधान की रक्षा हो सके। 
पवन हरचंदपुरी के इन विचारों का समर्थन करने वालों में प्रोफेसर संधू वरयानवी, डॉ. जोगिंदर सिंह निराला, डॉ. गुरचन कौर कोचर, डॉ. दीपक मनमोहन सिंह, डॉ. तेजवंत मान, प्रिंसिपल नवराही घुग्याणवी, डॉ. अमर कोमल, बापू ओम प्रकाश गासो, डॉ. सिंदरपाल सिंह, डॉ. पृथ्वी राज थापर, जुगराज धौला, डॉ. हरजीत सिंह साधर, डॉ. भगवंत सिंह, डॉ. गुरनैब सिंह, डॉ. सुरजीत शामिल हैं। बराड़, गुलजार सिंह शॉकी, भूपिंदर संधू, डॉ. बलदेव सिंह बधान, डॉ. भीमिंदर सिंह, डॉ. दर्शन सिंह अष्ट, डॉ. सुदर्शन गासो, डॉ. संपूर्ण सिंह टल्लेवालिया, इकबाल घारू, जगदीश राय कुलरियां, जगदीश राणा, डॉ. नायब सिंह मंडेर, लखविंदर बाजवा, बलवीर जलालाबादी, हरि सिंह ढुडीके, गुरचरण ढुडीके, डॉ. गुरचरण सिंह नूरपुर, लाल मिस्त्री और डॉ. दविंदर बीबीपुर आदि शामिल थे।