
गौतम नगर आश्रम में साप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम आयोजित।
होशियारपुर- दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा गौतम नगर आश्रम में साप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री अंजलि भारती जी ने बताया कि शिष्य के जीवन में सबसे बड़ा सुख गुरु भक्ति है। जो शिष्य गुरु भक्ति की अवस्था को प्राप्त कर लेता है, उसके जीवन में सदैव आनंद का वास हो जाता है।
होशियारपुर- दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा गौतम नगर आश्रम में साप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री अंजलि भारती जी ने बताया कि शिष्य के जीवन में सबसे बड़ा सुख गुरु भक्ति है। जो शिष्य गुरु भक्ति की अवस्था को प्राप्त कर लेता है, उसके जीवन में सदैव आनंद का वास हो जाता है।
‘गुरु भक्ति’ केवल गुरु-शिक्षक संबंधों की जानकारी नहीं है। यह ऐतिहासिक कहानियों का संग्रह नहीं है। न ही इसमें संतों और गुरु भक्तों द्वारा गाए गए गौरवशाली भजन हैं। **गुरु भक्ति एक आध्यात्मिक अवस्था है। हमारे शरीर में सात चक्र होते हैं, जिन्हें ऊर्जा केंद्र भी कहा जाता है। इनमें से छठा चक्र ‘आज्ञा चक्र’ है, जो **त्रिकुटी** पर स्थित है। इसे दिव्य दिव्यता का निवास माना जाता है।
पूर्ण गुरु जब दिव्य ज्ञान का प्रकटीकरण करते हैं, तो शिष्य के आज्ञा चक्र में अपना मूल स्वरूप स्थापित करते हैं। शिष्य की आध्यात्मिक स्थिति का केंद्र भी यही है। इसीलिए गुरु और शिष्य का शाश्वत मिलन इसी सिर स्थान पर होता है। यहां सतगुरु अपने शिष्य के इतने करीब होते हैं कि शिष्य का मन और बुद्धि भी उनके करीब नहीं होते। क्योंकि ये सभी निचले चक्र में उलझे रहते हैं। ध्यान के माध्यम से अपने मन और बुद्धि को ऊपर उठाना, उसे आज्ञा चक्र से जोड़ना और शाश्वत गुरु-तत्त्व से एकाकार करना—इस अवस्था को 'गुरु भक्ति' कहते हैं।**
जब शिष्य की चेतना आज्ञा चक्र में स्थित अपने गुरु-तत्त्व से जुड़ जाती है, तब उसका चलना-फिरना, उठना-बैठना, सोचना-बोलना—हर क्रिया गुरु-तत्त्व द्वारा संचालित होती है।**
इस अवस्था में गुरु अपनी इच्छानुसार आदेश दे सकता है और शिष्य उस आदेश का पालन कर सकता है।**
**इस अवस्था में गुरु शासन करता है और शिष्य साधन बन जाता है।**
