"हमने पर्यावरण को इतना नुकसान पहुंचाया है, हमें अगली पीढ़ी से माफी मांगने होगी"

पटियाला, 26 नवंबर: पंजाबी यूनिवर्सिटी के शिक्षा एवं सामुदायिक सेवा विभाग द्वारा ऑस्ट्रेलिया के पर्थ स्थित कर्टिन यूनिवर्सिटी के सहयोग से आयोजित किए जा रहे तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन से एक दिन पहले 'प्री-कॉन्फ्रेंस कार्यशाला' का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विभिन्न देशों से लगभग 20 विदेशी प्रतिनिधि मौजूद थे। डीन कॉलेज डेवलपमेंट काउंसिल डॉ. बलराज सिंह सैनी ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत करते हुए कहा कि दुनिया को अब अक्षय ऊर्जा स्रोतों की ओर लौटने की जरूरत है।

पटियाला, 26 नवंबर: पंजाबी यूनिवर्सिटी के शिक्षा एवं सामुदायिक सेवा विभाग द्वारा ऑस्ट्रेलिया के पर्थ स्थित कर्टिन यूनिवर्सिटी के सहयोग से आयोजित किए जा रहे तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन से एक दिन पहले 'प्री-कॉन्फ्रेंस कार्यशाला' का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विभिन्न देशों से लगभग 20 विदेशी प्रतिनिधि मौजूद थे।
डीन कॉलेज डेवलपमेंट काउंसिल डॉ. बलराज सिंह सैनी ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत करते हुए कहा कि दुनिया को अब अक्षय ऊर्जा स्रोतों की ओर लौटने की जरूरत है। 
उन्होंने कहा कि अब तक हमने प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण को इतना नुकसान पहुंचाया है कि नैतिक रूप से हमें अपनी अगली पीढ़ी से माफी मांगनी चाहिए। एक अन्य महत्वपूर्ण टिप्पणी में उन्होंने कहा कि अगर दुनिया भर के लोग अपने अहंकार से निपट लें तो प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहुंचाए बिना सब कुछ ठीक चल सकता है। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया सौर ऊर्जा पर जीवित रह सकती है। मुख्य वक्ता वनस्पति विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. मनीष कपूर ने उपस्थित विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि प्रकृति को स्वच्छ रखना तथा प्रदूषण को कम करना अब उनकी जिम्मेदारी है। 
उन्होंने कहा कि केवल वन महा उत्सव मनाना तथा कुछ पौधे लगाकर सोशल मीडिया पर तस्वीरें शेयर करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उन पौधों की देखभाल कर वृक्षों के विकास में योगदान देना भी जरूरी है। उन्होंने कहा कि आधुनिक समय में शहरीकरण के कारण कई समस्याएं बढ़ गई हैं, जिसके कारण हरित क्षेत्र नष्ट हो गए हैं तथा इन क्षेत्रों में इमारतें बन रही हैं, जो एक खतरनाक प्रवृत्ति है। 
विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित वित्त अधिकारी डॉ. प्रमोद अग्रवाल ने इस विषय पर बोलते हुए विभिन्न क्षेत्रों में मिलावटी संस्कृति के अस्तित्व के तथ्यों पर प्रकाश डाला तथा प्रकृति के प्रति मित्रवत दृष्टिकोण के साथ कृषि मॉडल को भी बढ़ावा दिया। कर्टिन विश्वविद्यालय, पर्थ रेकल शेफील्ड से प्रो. ने 'चिपको आंदोलन' का जिक्र करते हुए कहा कि प्रकृति के प्रति समर्पित ऐसे पूर्वजों से सीख लेने की जरूरत है। 
इस अवसर पर कर्टिन यूनिवर्सिटी, पर्थ से आए डॉ. पॉल गार्डनर ने अपनी विमोचित पुस्तक 'फॉर द लव ऑफ ट्रीज' से कुछ सामग्री पढ़ी, जो भारतीय समाज के एक विशेष समुदाय द्वारा प्रकृति के प्रति अपनाए गए सकारात्मक दृष्टिकोण के बारे में थी। विभागाध्यक्ष डॉ. जगप्रीत कौर ने अपने स्वागत भाषण में कार्यक्रम और तीन दिवसीय सम्मेलन की थीम के बारे में बताया। कर्टिन यूनिवर्सिटी, पर्थ से आईं सम्मेलन अध्यक्ष डॉ. रेखा कौल ने भी अपने विचार व्यक्त किए।