
पंजाब विश्वविद्यालय हिंदी विभाग ने हिंदी फिल्मी गीतों के साहित्यिक मूल्यांकन पर व्याख्यान आयोजित किया
चंडीगढ़ 25अक्तूबर, 2024: आज दिनांक 25अक्तूबर, 2024 को हिंदी-विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ द्वारा “हिंदी के प्रभावी सिनेमा गीतों का साहित्यिक मूल्यांकन” विषय पर व्याख्यान करवाया गया। इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में प्रो० ईश्वर जे पवार (अध्यक्ष, हिंदी-विभाग, सी०टी० बोरा कॉलेज, शिरूर, महाराष्ट्र) ने विषय आधारित व्याख्यान प्रस्तुत किया। कार्यक्रम की शुरुआत में विभागाध्यक्ष प्रो० अशोक कुमार एवं प्रो० गुरमीत सिंह ने अतिथि महोदय का भेंट देकर औपचारिक स्वागत किया। प्रो० ईश्वर जे पवार ने अपने वक्तव्य में कहा कि सिनेमा के बहुत से गीत हिन्दी के मूर्धन्य कवियों की कविताओं का आधुनिक वर्ज़न हैं।
चंडीगढ़ 25अक्तूबर, 2024: आज दिनांक 25अक्तूबर, 2024 को हिंदी-विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ द्वारा “हिंदी के प्रभावी सिनेमा गीतों का साहित्यिक मूल्यांकन” विषय पर व्याख्यान करवाया गया। इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में प्रो० ईश्वर जे पवार (अध्यक्ष, हिंदी-विभाग, सी०टी० बोरा कॉलेज, शिरूर, महाराष्ट्र) ने विषय आधारित व्याख्यान प्रस्तुत किया। कार्यक्रम की शुरुआत में विभागाध्यक्ष प्रो० अशोक कुमार एवं प्रो० गुरमीत सिंह ने अतिथि महोदय का भेंट देकर औपचारिक स्वागत किया। प्रो० ईश्वर जे पवार ने अपने वक्तव्य में कहा कि सिनेमा के बहुत से गीत हिन्दी के मूर्धन्य कवियों की कविताओं का आधुनिक वर्ज़न हैं।
आज गीतकार उनकी धुन में तो परिवर्तन कर सकते हैं लेकिन वे उनके द्वारा कविता में दिए गए शब्दों को बदल कर गीत बनाने में सक्षम नहीं हो पाए हैं। क्यूंकि जिन शब्दों का चयन भावनाओं के सम्प्रेषण के लिए हमारे कवियों ने किया है उनके अभाव में, उन भावनाओं को व्यक्त ही नहीं किया जा सकता। इसके साथ उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में गीतों की भूमिका, भारतीय सिनेमा के इतिहास, गीतों केआरंभ और गीतों को रचने के पीछे की चर्चित कहानियों से विद्यार्थियों को अवगत करवाया।
साथ ही उन्होंने कहा किवर्तमान समय के गीतकारों द्वारा सांस्कृतिक मूल्यों की जो अनदेखी की जा रही है वह कहीं न कहीं भारतीय संस्कृति के लिए चिंता का विषय है। पुराने सिने गीतों में शब्द चयन, रूपकों के प्रयोग के कारण, किस प्रकार एक सामान्य गीत प्रभावी गीत बन जाता है, इस पर भी उन्होंने अपनी बात रखी। उन्होंने अमीर खुसरो, कवि प्रदीप, कवि नीरज, शैलेन्द्र, संतोष आनंद, भरत व्यास, आनंद बख्शी जैसे कई कवि-गीतकारों की गीत-लेखनशैली और उसमें साहित्यिक तत्वों की स्थिति के ऊपर तुलनात्मक चर्चा की। इसके पश्चात् उन्होंने विद्यार्थियों के प्रश्नों के विषयानुकूल उत्तर दिए।
अंत में विभागाध्यक्ष प्रो० अशोक कुमार ने कार्यक्रम के मुख्यवक्ता प्रो० ईश्वर जे पवार का धन्यवाद करते हुए कहा कि सिनेमा एवं संगीत पर इनका कार्य सराहनीय है। वर्तमान पीढ़ी को अच्छे और बुरे गीतों की समझ होनी चाहिए।मुझे विश्वास है कि व्याख्यान इस दृष्टि को विकसित करने में विद्यार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगा। कार्यक्रम में संकाय सदस्य प्रो० गुरमीत सिंह, विद्यार्थी तथा शोधार्थी उपस्थित रहे।
