संपादक: दविंदर कुमार

गुरु वह नहीं जो आपके लिए मशाल थामे, बल्कि वह स्वयं मशाल होता है।

लेखक :- पैग़ाम-ऐ-जगत

पंजाब सरकार का सार्थक कदम: ऑपरेशन जीवन ज्योति 2.0

भीख मांगना एक सभ्य समाज के लिए एक कलंक है। यदि हम अपने राज्य पंजाब की बात करें तो पिछले कुछ वर्षों में यहाँ भिखारियों की संख्या में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है। यदि इसके कारणों की बात करें तो पहला कारण यह है कि पंजाब एक समृद्ध प्रांत है और दूसरा यह कि पंजाबी लोग किसी पर भी बहुत जल्दी विश्वास कर लेते हैं। पंजाबी लोगों को भावनात्मक रूप से बहुत आसानी से प्रभावित किया जा सकता है।

भीख मांगना एक सभ्य समाज के लिए एक कलंक है। यदि हम अपने राज्य पंजाब की बात करें तो पिछले कुछ वर्षों में यहाँ भिखारियों की संख्या में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है। यदि इसके कारणों की बात करें तो पहला कारण यह है कि पंजाब एक समृद्ध प्रांत है और दूसरा यह कि पंजाबी लोग किसी पर भी बहुत जल्दी विश्वास कर लेते हैं। पंजाबी लोगों को भावनात्मक रूप से बहुत आसानी से प्रभावित किया जा सकता है।
 यहाँ गुरुद्वारों की संख्या काफी अधिक है, जहाँ लंगर निरंतर चलता रहता है और हर किसी को मुफ्त में आसानी से भोजन मिल जाता है। इन कुछ कारणों के चलते भीख मांगने का धंधा इतना फल-फूल गया है कि आज हर शहर, कस्बे के चौराहों पर, धार्मिक स्थानों के पास, अस्पतालों में, बाजारों और शैक्षणिक संस्थानों के निकट, अजीबो-गरीब परिधानों में हर आयु वर्ग के भिखारी नजर आते हैं।
पिछले कुछ दिनों से पंजाब सरकार द्वारा चलाई जा रही मुहिम "ऑपरेशन जीवन ज्योति 2.0" समाचार पत्रों और अन्य प्रसार माध्यमों की सुर्खियाँ बनी हुई है। वैसे तो भीख मांगने की प्रथा एक देशव्यापी समस्या है। यदि आँकड़ों की बात करें तो 2011 की जनगणना के अनुसार पश्चिम बंगाल में भिखारियों की संख्या सबसे अधिक थी और दूसरा नंबर उत्तर प्रदेश का था। 
पंजाब में भी भिखारियों की बहुसंख्या प्रवासियों की है। इसमें हर आयु वर्ग के स्त्री, पुरुष और बच्चे शामिल हैं। भारतीय कानून व्यवस्था के अनुसार भीख मांगना एक अपराध है। लेकिन यह प्रथा बिना किसी रोक-टोक के हर प्रांत में चल रही है और आज के समय में यह एक संगठित कारोबार बन चुका है। 
इसमें कुछ तो जन्मजात रूप से ही अपंग होते हैं, लेकिन कुछ नकली रूप से स्वयं को अपंग बनाते हैं और कुछ बच्चों को इस धंधे को व्यावसायिक स्तर पर चलाने वालों द्वारा अपंग बनाया जाता है। यह हमारे देश और समाज की कटु सच्चाई है। विकलांग होना कोई दैवीय कोप या भगवान का श्राप नहीं है। मैं ऐसे सैकड़ों लोगों की उदाहरण दे सकता हूँ जिन्होंने किसी अपंगता के बावजूद जीवन में मेहनत और संघर्ष से बड़े मुकाम हासिल किए हैं।
इस समस्या के सही समाधान के लिए पंजाब सरकार द्वारा पूरे राज्य में एक मुहिम शुरू की गई है, जिसे "प्रोजेक्ट जीवन ज्योति 2.0" का नाम दिया गया है। यह एक क्रांतिकारी पहल है, जिसका मुख्य उद्देश्य बाल भिखारियों को इस दुष्चक्र से मुक्त करवाकर शिक्षा और पुनर्वास का प्रबंध करना है। इस उद्देश्य के लिए हर जिले में एक टास्क फोर्स का गठन किया गया है। 
इस टास्क फोर्स का मुखिया संबंधित जिले का डिप्टी कमिश्नर होगा। उनके अलावा कमिश्नर, पुलिस सुपरिंटेंडेंट, सिविल सर्जन, जिला शिक्षा अधिकारी और जिला श्रम अधिकारी भी शामिल होंगे। सभी जिलों को एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी की गई है, जिसके तहत प्रोजेक्ट जीवन ज्योति 2.0 को लागू करने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश हैं। 
एसओपी में वृद्ध पुरुषों और महिलाओं के साथ भीख मांगने वाले बच्चों के माता-पिता की पुष्टि के लिए डीएनए टेस्ट करवाने के निर्देश जारी किए गए हैं। यह बच्चों की चोरी, तस्करी और शोषण की समस्या को हल करने के लिए एक कारगर कदम है। निस्संदेह, प्रोजेक्ट जीवन ज्योति 2.0 पंजाब के बच्चों के लिए एक सुरक्षित और उज्ज्वल भविष्य के लिए एक प्रशंसनीय उपक्रम है।
पिछले कुछ महीनों में पंजाब के विभिन्न स्थानों से 367 बच्चों को बचाया गया है। इनमें से 350 बच्चों को उनके परिवारों के साथ मिलाया गया है और 17 बच्चों को बाल देखभाल गृहों में भेजा गया है क्योंकि उनके परिवारों के बारे में कोई सुराग नहीं मिल सका। अब तक 183 बच्चों को स्कूलों में दाखिल करवाया गया है और 13 छोटे बच्चों को आंगनवाड़ी केंद्रों में भेजा गया है। पंजाब सरकार ने इन बच्चों को एक स्वर्णिम भविष्य प्रदान करने के लिए कई अन्य कल्याण योजनाएँ बनाई हैं।
जहाँ सरकारें इस सामाजिक बुराई को रोकने के लिए प्रयासरत हैं, वहाँ देश के प्रत्येक नागरिक को भी इस अभिशाप को समाप्त करने में अपना योगदान देना चाहिए। आपको यह बात पूरी तरह स्वीकार कर लेनी चाहिए कि किसी भी भिखारी को 5-10 रुपये देकर आप उसका कोई भला नहीं कर रहे, बल्कि एक ऐसे वर्ग का निर्माण कर रहे हैं जो समाज पर बोझ है। इस तरह निकम्मों और मुफ्त की रोटियाँ तोड़ने वालों की फौज खड़ी हो रही है। 
एक मजदूर पूरे दिन खेतों में या अन्य जगह मेहनत करके 500-600 रुपये कमाता है। लेकिन ये लोग, जिनमें बहुसंख्या नाबालिग बच्चों और महिलाओं की है, बड़े आराम से 2,000-3,000 रुपये इकट्ठा कर लेते हैं। भीख मांगने की प्रथा अनेक बुराइयों को जन्म देती है। आइए, हम सभी जिम्मेदार नागरिक होने का सबूत देते हुए इनके शिक्षा, कौशल विकास और पुनर्वास के प्रयासों में हिस्सेदार बनें। इस समस्या का सार्थक समाधान चौराहों पर सिक्के बाँटना नहीं, बल्कि शिक्षित भारत बनाना है।

-दविंदर कुमार

- देविंदर कुमार
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