आज विच कांशी दे आये सतगुरु मेरे नाल हाज़िर हैं गायक बूटा कोहिनूर-बलदेव सिंह बल्ली

नवांशहर- पुख्ता गायक बूटा कोहिनूर ने सतगुरु श्री गुरु रविदास जी महाराज जी के आ रहे गुरपर्व के संबंध में "आज कांशी विच आए सतगुर मेरे सतगुर मेरे" ऊंची आवाज में गाए गीत से धार्मिक मंडलों में गुरपर्व से पहले ही अग्रिम दस्तक देने के साथ सतगुरों को सम्मान भेंट किया है। इस गाने को ग्रीस के गीतकार रामजी धीर गार्ले ढाहा और बब्बी हियाला ने संयुक्त रूप से लिखा है। इस गाने को युवा संगीतकार आरडी बॉय और बीआर दमाना ने संगीतबद्ध किया है। जानी एक गीत एक गायक, गीतकार और संगीतकार दो-दो हैं। यह गाना मशहूर पत्रकार गुरबख्श माहे द्वारा निर्मित और जेएम7 एंटरटेनमेंट द्वारा प्रस्तुत किया गया है।

नवांशहर- पुख्ता गायक बूटा कोहिनूर ने सतगुरु श्री गुरु रविदास जी महाराज जी के आ रहे गुरपर्व के संबंध में "आज कांशी विच आए सतगुर मेरे सतगुर मेरे" ऊंची आवाज में गाए गीत से धार्मिक मंडलों में गुरपर्व से पहले ही अग्रिम दस्तक देने के साथ सतगुरों को सम्मान  भेंट किया है। इस गाने को ग्रीस के गीतकार रामजी धीर गार्ले ढाहा और बब्बी हियाला ने संयुक्त रूप से लिखा है। इस गाने को युवा संगीतकार आरडी बॉय और बीआर दमाना ने संगीतबद्ध किया है। जानी एक गीत एक गायक, गीतकार और संगीतकार दो-दो हैं। यह गाना मशहूर पत्रकार गुरबख्श माहे द्वारा निर्मित और जेएम7 एंटरटेनमेंट द्वारा प्रस्तुत किया गया है।
इससे पहले बूटा कोहिनूर, हुस्न दी सरकार, वीएमवी कंपनी जालंधर व सारे गांव, चो सुनखी, बीबीएन कंपनी अंबाला (हरियाणा) के माध्यम से अनेक सांस्कृतिक, धार्मिक व सूफी गीतों के कैसेट व सिंगल ट्रैक देकर श्रोताओं के साथ गहरा नाता स्थापित कर चुके हैं। वक्त की मार, आर्थिक तंगी व कड़वी परिस्थितियों से त्रस्त बूटा काम व किरस से जुड़े रहना पसंद करते हुए अपने गायन के जुनून को बुलंदियों पर पहुंचाने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। बूटा कोहिनूर का जन्म शहीद भगत सिंह नगर जिले की बलाचौर तहसील के गरले ढाहा गांव में माता गुरचैन कौर व पिता जोगिंदर राम के घर हुआ। जब वह मात्र 21 दिन के थे, तभी उनके सिर से पिता का साया उठ गया।
 मां की मेहनत की बदौलत उन्होंने बीए तक शारीरिक श्रम करना पसंद किया, लोगों के घरों व दीवारों पर पेंटिंग की और संगीत से जुड़े रहकर अपने जीवन को रंगों से भर दिया। वर्ष 1994 में बंगा (नवांशहर) के नजदीक प्रसिद्ध गांव मुकंदपुर में कमलेश रानी के साथ विवाह के दौरान सालियों की घेराबंदी के दौरान बूटे ने अपनी जेब में झांका और सालियों को अपना पहला कैसेट हुस्न दी सरबरा भेंट कर उनसे हाथ मिलाने में भलाई समझी। वर्ष 2007 में बूटे पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा जब उनकी जीवन संगिनी उन्हें और उनकी बेटी व बेटे को हमेशा के लिए छोड़कर चली गई तथा डेढ़ साल पहले उनकी माता भी चल बसी। 
दुखों, दर्दों व विलापों को मन में समेटे वे रोजी-रोटी की खातिर सांस्कृतिक गीतों के माध्यम से लोगों का मनोरंजन करने के लिए घर से निकलते रहे। बूटे की दिन-रात की मेहनत की बदौलत अब उनका बेटा हरप्रीत सिंह व बेटी मनप्रीत कौर अपने परिवारों के साथ कनाडा में खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं और बूटे भी उनके पास जाकर रंगों का आनंद लेते हैं। वे अपने पेशे में वापस लौट आए हैं। प्रवीण भर्ता, रेणुका भर्ता के साथ गाए गए युगल गीतों, सांस्कृतिक मेलों, अखाड़ों, धार्मिक आयोजनों में प्रस्तुति और विभिन्न चैनलों पर प्रसारित गीतों के माध्यम से वे पहले ही दर्शकों के चहेते बन चुके हैं और अब वे उनसे प्रेम के बंधन को और मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं। ईश्वर उनकी आशाओँ को आशा से भी ज्यादा बूर पाये।