साहिर लुधियानवी की युद्ध विरोधी कविता वायरल हुई,

नवांशहर, 10 मई- पहलगाम में पाकिस्तानी चरमपंथियों द्वारा 26 भारतीय नागरिकों की हत्या के बाद पाकिस्तान और भारत के बीच बढ़े तनाव के कारण बयानबाजी, कार्टून, सीमा पर गोलीबारी में वृद्धि, राजनीतिक नेताओं द्वारा विभिन्न बयान, नारेबाजी, प्रदर्शन, सीधे सैन्य हमले के सुझाव और कई अन्य प्रकार के तनाव पैदा हो गए हैं। वहीं, लेखक अपनी कलम के माध्यम से अपनी समझदारी व्यक्त करके अपना उचित योगदान दे रहे हैं।

नवांशहर, 10 मई- पहलगाम में पाकिस्तानी चरमपंथियों द्वारा 26 भारतीय नागरिकों की हत्या के बाद पाकिस्तान और भारत के बीच बढ़े तनाव के कारण बयानबाजी, कार्टून, सीमा पर गोलीबारी में वृद्धि, राजनीतिक नेताओं द्वारा विभिन्न बयान, नारेबाजी, प्रदर्शन, सीधे सैन्य हमले के सुझाव और कई अन्य प्रकार के तनाव पैदा हो गए हैं। वहीं, लेखक अपनी कलम के माध्यम से अपनी समझदारी व्यक्त करके अपना उचित योगदान दे रहे हैं। 
इस संबंध में आज जहां प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अपने-अपने तरीके से सक्रिय हैं, वहीं सोशल मीडिया पर दोनों देशों द्वारा एक-दूसरे पर सीधे सैन्य हमला करने, अच्छा सबक सिखाने, रीढ़ तोड़ने, दुनिया के नक्शे से मिटा देने, टुकड़े-टुकड़े करने और उन्हें नष्ट करने के लिए विभिन्न उकसावे दिए जा रहे हैं। 
इस मामले पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए प्रसिद्ध समाजसेवी श्री बरजिंदर सिंह हुसैनपुर, रमनदीप सिंह थियारा, कांग्रेस नेता केवल सिंह खटकड़ व कुलविंदर पाल सिंगला ने कहा कि युद्ध इस मसले का हल नहीं है, दोनों देशों को एक साथ आकर टेबल टॉक के माध्यम से इस मसले का हल निकालने की जरूरत है। 
जबकि, इसके विपरीत कुछ लोग माथे पर जलते दीयों की रोशनी के साथ मीडिया के माध्यम से युद्ध की भयावहता और इसके दूरगामी परिणामों को लोगों तक पहुंचाकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रहे हैं। 
युद्ध के विरोध में जहां व्यंग्य, चुटकुले, लघु कथाएं, कविताएं व साहित्य की अन्य विधाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है, वहीं उर्दू के प्रगतिशील कवि साहिर लुधियानवी की एक प्रसिद्ध युद्ध विरोधी कविता सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। उन्होंने यह कविता 1965 के भारत-पाक युद्ध पर लिखी थी। 
उनकी कुछ पंक्तियां:
बम गिरे घरों पर या सीमा पर, जख्मी हो गए आत्मा। विदेशियों ने जला दिए खेत, दुश्मनों ने जिंदगी तार-तार कर दी। टैंक आगे बढ़े या पीछे हटे, धरती की कोख बंजर हो गई। जीत का जश्न या हार का मातम मनाया गया, जिंदगी अंतिम संस्कारों पर रोई, जंग अपने आप में एक मुद्दा है, यह क्या समस्याओं का समाधान देगी, आज खून और आग बरसेगी, कल भूख और जरूरतें देंगी, इस लिए ऐ शरीफ इंसान, जंग टलती रहे तो बेहतर, आप और हम सभी के आंगन में, शमा जलती रहे तो बेहतर।