
अपने माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध विवाह करने वाले जोड़े पुलिस सुरक्षा का दावा नहीं कर सकते: इलाहाबाद उच्च न्यायालय।
प्रयागराज, 17 अप्रैल - इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि अपने माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध स्वेच्छा से विवाह करने वाला जोड़ा तब तक पुलिस सुरक्षा का दावा नहीं कर सकता जब तक कि उनके जीवन और स्वतंत्रता को वास्तविक खतरा न हो। अदालत ने यह फैसला एक दम्पति द्वारा सुरक्षा की मांग हेतु दायर याचिका पर दिया। इसने कहा कि अदालत उपयुक्त मामले में जोड़े को सुरक्षा प्रदान कर सकती है, लेकिन किसी भी खतरे की अनुपस्थिति में, ऐसे जोड़े को ‘एक-दूसरे का समर्थन करना और समाज का सामना करना सीखना चाहिए।’
प्रयागराज, 17 अप्रैल - इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि अपने माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध स्वेच्छा से विवाह करने वाला जोड़ा तब तक पुलिस सुरक्षा का दावा नहीं कर सकता जब तक कि उनके जीवन और स्वतंत्रता को वास्तविक खतरा न हो। अदालत ने यह फैसला एक दम्पति द्वारा सुरक्षा की मांग हेतु दायर याचिका पर दिया। इसने कहा कि अदालत उपयुक्त मामले में जोड़े को सुरक्षा प्रदान कर सकती है, लेकिन किसी भी खतरे की अनुपस्थिति में, ऐसे जोड़े को ‘एक-दूसरे का समर्थन करना और समाज का सामना करना सीखना चाहिए।’
न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव ने श्रेया केसरवानी और उनके पति द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें पुलिस सुरक्षा और निजी प्रतिवादियों को उनके शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन में हस्तक्षेप न करने का निर्देश देने की मांग की गई थी। अदालत ने याचिका में दी गई दलीलों पर गौर करने के बाद तथा यह देखते हुए कि याचिकाकर्ताओं को कोई गंभीर खतरा नहीं है, उनकी रिट याचिका का निपटारा कर दिया।
रिट याचिका का निपटारा करते हुए न्यायालय ने कहा, "लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य तथा एक अन्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के मद्देनजर, उन्हें पुलिस सुरक्षा प्रदान करने के लिए कोई आदेश पारित करने की आवश्यकता नहीं है, जहां यह माना गया है कि अदालतें ऐसे युवकों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए नहीं हैं, जो अपनी इच्छा से भागकर विवाह कर लेते हैं।"
अदालत ने यह भी कहा कि यह निष्कर्ष निकालने का कोई ठोस कारण नहीं है कि याचिकाकर्ताओं का जीवन और स्वतंत्रता खतरे में है। अदालत ने कहा, "ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जो यह सुझाए कि निजी प्रतिवादी (याचिकाकर्ताओं में से किसी के रिश्तेदार) याचिकाकर्ताओं पर शारीरिक या मानसिक हमला कर सकते हैं।"
