
गौतम नगर होशियारपुर में साप्ताहिक आध्यात्मिक कार्यक्रम का आयोजन
होशियारपुर- दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा स्थानीय आश्रम गौतम नगर होशियारपुर में साप्ताहिक आध्यात्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें श्री आशुतोष महाराज जी की सेविका साध्वी सुश्री अंजलि भारती जी ने बताया कि श्री वेद व्यास जी ने 18 पुराणों की रचना की, परन्तु इतना सब कुछ होने के बावजूद भी वे अशांत थे। जब नारद जी ने उनकी अशांतता का कारण पूछा, तो वेद व्यास जी ने कहा कि मैं उस ईश्वर के परम तत्व को नहीं जान पाया।
होशियारपुर- दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा स्थानीय आश्रम गौतम नगर होशियारपुर में साप्ताहिक आध्यात्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें श्री आशुतोष महाराज जी की सेविका साध्वी सुश्री अंजलि भारती जी ने बताया कि श्री वेद व्यास जी ने 18 पुराणों की रचना की, परन्तु इतना सब कुछ होने के बावजूद भी वे अशांत थे। जब नारद जी ने उनकी अशांतता का कारण पूछा, तो वेद व्यास जी ने कहा कि मैं उस ईश्वर के परम तत्व को नहीं जान पाया।
तब नारद जी ने उन्हें दीक्षा दी, जिसका वास्तविक अर्थ है परम शांति से जुड़ना, ईश्वर का प्रत्यक्ष अनुभव करना। ईश्वर को जानने के लिए गुरु की आवश्यकता होती है, जिसके माध्यम से उनके वास्तविक स्वरूप का ज्ञान प्राप्त होता है। इसी कारण हमारे सभी धर्मग्रंथ गुरु की महिमा का गुणगान करते हैं। गुरु पूर्णिमा का तिउहाड़ हर मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसी दिन वेद व्यास जी का जन्म हुआ था और इसी दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
इसलिए इस दिन को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। साध्वी जी ने उपासना विषय पर बोलते हुए कहा कि संसार उपासना तो कर रहा है, परंतु उसे इस उपासना की विधि का ज्ञान नहीं है। जो गुरु है और जिसकी आंतरिक दृष्टि खुल चुकी है, वही उपासना की विधि जानता है और उसी की उपासना सर्वश्रेष्ठ एवं सफल होती है। व्यक्ति को आत्मनिरीक्षण कराने वाला गुरु ही है।
जिसके माध्यम से वह दिव्य ज्ञान प्राप्त कर अपने जीवन को प्रकाशवान बना सकता है। इसी कारण हमारे सभी शास्त्रों में गुरु की महिमा का वर्णन किया गया है। गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और शंकर कहा गया है। इसके पीछे आध्यात्मिक रहस्य यह है कि गुरु ही सेवक को दिव्य ज्ञान प्रदान कर उसे दूसरा जन्म देता है।
तब सेवक अंतर्जगत में प्रवेश करता है। जब तक सेवक का पुनर्जन्म नहीं होता, तब तक ईश्वर के घर में प्रवेश नहीं होता। जिसके लिए गुरु ही ब्रह्मा है। फिर गुरु ही सेवक की हर कदम पर रक्षा और पालन-पोषण करता है, जिसके लिए गुरु ही विष्णु है। सेवक के बुरे विचारों और दुर्गुणों का नाश करने वाला गुरु ही महेश अर्थात शंकर है।
अतः धर्मग्रंथों का यह मत है कि केवल उसी गुरु को प्रणाम करना चाहिए जो ब्रह्मा, विष्णु और शिव का स्वरूप हो। इसी कारण सभी धर्मग्रंथ गुरु की महिमा का गुणगान करते हैं। गुरु ही अपने भक्त को ज्ञान का बोध कराते हैं और ईश्वरीय ज्ञान से ही शांति संभव है। इसलिए हमारे धर्मग्रंथों में गुरु के बारे में कहा गया है कि गुरु ही परम धर्म और परम गति हैं।
